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अर्थव्यवस्था एवं उद्योग-व्यवसाय
२२३ को मांस अथवा चमड़े के लिए भी मारा जाता था।' चमड़ों से निर्मित विविध प्रकार के वाद्य यन्त्रों का निर्माण होता था। चमरी मृग की पूंछ के बालों से भी व्यावसायिक उपयोग होने का अनुमान लगाया जा सकता है ।२ मुत-हाधियों से हाथी-दांत तथा मोतियों आदि का व्यापार भी आर्थिक दृष्टि से महत्त्वपूर्ण व्यवसाय रहा था। संभवत: व्यापारी लोग भीलों आदि से हाथी दांत खरीदकर इसका व्यापार करते थे।
पशु पक्षियों से दुर्व्यवहार
जैनाचार्य जटसिंहनन्दि ने पशों तथा पक्षियों के साथ दुर्व्यवहार करने की निन्दा की है।५ प्रायः हाथी, घोड़े, ऊंट, गधे, खच्चरों आदि पशुओं पर अपेक्षा से अधिक वजन लादा जाता था तथा इन्हें भूखा प्यासा रखा जाता था। धार्मिक दृष्टि से पवित्र माने जाने वाले गाय जैसे पशु को भी सामाजिक शोषण तथा दमनपूर्वक व्यवहार का शिकार होना पड़ता था। प्रायः पशुओं को डण्डों, अंकुशौं, चाबुकों, रस्सियों आदि से मारा पीटा भी जाता था। पशु-पक्षियों के गले में मोटी रस्सी बांध दी जाती थी। कुछ पशु-पक्षियों को विशाल पिंजड़ों में बन्द कर दिया जाता था अथवा उसके पांवों में रस्सी बांध दी जाती थी। आखेटक प्रायः कबूतर, लवक, वर्तक, मोर, कपिंजल, टिटिभ, आदि पक्षियों को दाना डालकर जाल में फांस लेते थे। इसी प्रकार पाखेटकों द्वारा नदी, तालाब प्रादि स्थानों पर
१. वरांग०, ६.२१ २. वही, ६.२६ ३. वही, ६.२६ ४. दन्तवाणिज्यं हस्त्यादिदन्ताद्यवयवानां पुलिन्दादिषु द्रव्यदानेन तदुत्पत्ति
स्थाने वाणिज्याथं ग्रहणम् । -(सागार धर्मामृत, ५.२३, पर टीका), जैनेन्द्र सिद्धान्त कोश, भाग ४,
पृ. ४२२ से उद्धृत। ५. वराङ्ग०, ५.२६ ६. वही, ६.१५ ७. वही, ६.१६ ८. वही, ६.१७ ६. वही, ६.१७ १०. वही, ६.१७