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अर्थव्यवस्था एवं उद्योग-व्यवसाय
२१५ विलास की सामग्रियाँ वृक्षों तथा पुष्पों आदि से प्राप्त होती थीं।' अतएव उद्यानों में वृक्षारोपण का प्रमुख लक्ष्य धनोपार्जन भी रहा था । सुगन्धित पदार्थों तथा लोंग; इलायची, कङ्कोल आदि वहुमूल्य वस्तुओं के आर्थिक उत्पादन के मूलस्रोत वृक्ष एवं उद्यान व्यवसाय ही थे। गन्ना की पैदावार भी वनों तथा बगीचों में की जाने लगी थी। इसका अभिप्राय था जो लोग कृषि-भूमि द्वारा व्यवसाय करने में असमर्थ थे वे बाग-बगीचों के माध्यम से गन्ना आदि बोक र जीवन निर्वाह कर सकते थे। कृषक वर्ग ही खेतों द्वारा तथा बाग-बगीचों द्वारा अनाज, शाक, सब्जियां, फल आदि उगाने का कार्य करते थे । बाग-बगीचों तथा उद्यानों में अनेक प्रकार के वृक्ष तथा लताएं लगाई जाती थीं।
वृक्ष-उद्योग का आर्थिक दृष्टि से महत्त्व
___ आलोच्य युग में विविध प्रकार की भोग-विलास की सामग्रियों में अधिकांश वस्तुएं उद्यानों अथवा वनों में ही उत्पादित होती थीं। इस कारण उद्यानों के प्रौद्योगिक एवं आर्थिक महत्त्व की उपेक्षा नहीं की जा सकती है। चम्पा, मालती, नागकेशर, चमेली आदि विविध प्रकार की पुष्प मालानों को सौन्दर्य प्रसाधन के रूप में प्रयोग किया जाता था। वृक्षों की लकड़ियों आदि से सम्बन्धित उद्योग भी प्रगति पर थे।५ चन्दन के विविध प्रकारों का उत्पादन भी उद्यानों आदि में ही होता था । पद्या० महाकाव्य के एक उल्लेखानुसार गोशीर्ष चन्दन का एक लाख दीनार मूल्य होना तत्कालीन सुगन्धित एवं शीतल पदार्थों की आर्थिक उपयोगिता को स्पष्ट कर देता
१. वराङ्ग०, ७.६-१०, २०-२२ २. वराङ्ग०, २१.४१ ३. एलातमालोत्पलचम्पकानां गन्धान्स्वगन्धश्च विशेषयन्ति ।
-वराङ्ग०, ७.६ उरः शिरोदेशनिवेशचम्पकप्रकारपुष्पप्रकरो नरोत्तम । कर्पूर-कृष्णागुरुरङ-कुनामिभिः सौरभ्यसम्भारमयो भवान्वहम् ॥
-पद्या०, ३.१३१, वसन्त०, २.२७ ४. सुगन्धिसच्चम्पकमालतीनां पुन्नागजात्युत्पलकेतकीनाम् ।। पञ्चप्रकारा रचिताग्र्यमाला माल्याङ्गवृक्षा विसृजन्त्यजस्रम् ॥
-वराङ्ग०, ७.२२ ५. द्वया०, १८.२० ६. तुरुष्ककालागरुचन्दनानां...स्वगन्धैश्च विशेषयन्ति ।। - वराङ्ग०, ७.६
तथा-कर्पूरकृष्णागुरु-धूपनैः । -पद्या०, ३,११५