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राजनैतिक समाज तन्त्र एवं राज्य व्यवस्था
१.५
यशोधरचरित में चोरों पर नियन्त्रण पाने के लिए कठोर दण्डों का उल्लेख आया है। इन कठोर दण्डों में चोरों को पकड़ कर उनके शरीर को बींधते हुए यातना देना,' उन्हें 'कुसूलक' (धान्य आदि रखने का पात्र जिसे कर्नाटक भाषा में 'कणज' कहा जाता है) में डालकर ऊपर से लाक्षा का लेप कर देना प्रादि दण्ड दिए जा सकते थे। अभयकुमारचरित (६.६६०-६६८) के आधार पर चोरी करने वाले व्यक्ति को धातुमय चूणं से काला कर, गले में सरावमालिका पहनाकर, सिर पर जीर्णसूर्प का छत्र लगाकर बिना पूंछ तथा कान से युक्त गधे पर बिठाकर, सारे नगर का भ्रमण कराते हुए वध-स्थान की ओर ले जाया जाता था । हत्या
तत्कालीन समाज में पारस्परिक द्वेष के कारण हत्या करने की घटनाओं की सूचना मिलती है। हत्या कर देने के उपरान्त अपराध सिद्ध होने के भय से शव को वहीं खड्डे में गाढ़ दिया जाता था ।५ राजकर्मचारियों में से यदि किसी एक की हत्या कर दी जाए तो सर्वप्रथम हत्यारे व्यक्ति को राजा के पास ले जाया जाता था। किन्तु सरल स्वभाव बाले व्यक्तियों से यदि अनजाने में हत्यादि अपराध हो जाते थे तो वे राजपुरुषों द्वारा बन्दी बनाए जाने से पूर्व ही राजा के पास जाकर स्वयं ही अपना अपराध स्वीकार कर लेते थे। स्त्री-ग्यभिचार
पर-स्त्री के साथ अनैतिक सम्बन्ध स्थापित करना आलोच्य काल की बहुप्रचलित अपराधवृत्ति सी बन गई थी। कभी कभी रानियों तथा राजकुमारियां द्वारा परपुरुष से अनैतिक सम्बन्ध स्थापित करने का भी उल्लेख मिलता है। इनमें
१. तु०-निगृह्य चौरं तु निहत्य चोच्यकैः कदाचिदेकं परमाणुमात्रकम् ।
-यशो०, ४.१५ २. तु०-प्रवेश्य चौरं हि महत्कुसूलकं, विलिप्य लाक्षां बहिरप्यरन्ध्रकम् ।
-वही, ४.१७ ३. नेमिचन्द्र शास्त्री, संस्कृत काव्य के विकास में०, पृ० ५२९ ४. तु०-इत्यहं खण्डशोऽकार्ष कूष्माण्डमिव तद्वपुः । -परि०, ३.२०८ ५. तु०-गर्त खनित्वा तत्रैव न्यधामथ निधानवत् । -वही, ३,२०८ ६. परि०, ७.७१ ७. तु०-तदद्य रजकवधापराधान्नुपपुरुषः ।
____नीये न यावत्तावद्धि स्वयं यामि नृपान्तिकम् ॥ - वही ७.७१ ८. तु०-परदाराभिलङ्घिनः । - वराङ्ग०, ५.२६
परस्त्रीसुरतप्रियान् । - वही, ५.५६