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युद्ध एवं सैन्य व्यवस्था
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३८. गदा'-नीतिप्रकाशिका के अनुसार चार हाथ ऊँचा तथा आगे से बृहद् शीर्ष
वाला 'गदा' नामक आयुध लौहशंकुओं से व्याप्त रहता था । हाथियों तथा चट्टानों आदि पर आघात करने के लिए यह अत्यन्त उपयोगी आयुध था। बीस प्रकार के आक्रमणात्मक प्रयोजन इस शस्त्र
से साधे जा सकते थे।3 ३६. मुद्गर --जिसका पादभाग सूक्ष्म हो तथा जो शीर्ष रहित हो 'मुद्गर
कहलाता था। इसमें पकड़ने की मूठ विद्यमान रहती थी। बृहद् शकु के आकार सदृश इसकी लम्बाई तीन हाथ मानी जाती है। 'भ्रमण' तथा 'पातन' इसके मुख्य उपयोग रहे थे। कौटिल्य ने इसे
चलयन्त्र की संज्ञा प्रदान की है। ४०. मुसल - मजूमदार ने इसे खैर की बनी हुई छड़ी के रूप में स्पष्ट किया
है ।१० दीक्षितार इसे 'शूल' अथवा 'त्रिशूल' श्रेणी का शस्त्र मानते
हैं।' १ 'पातन' और 'पोथन' इसकी द्विविध गतियां कही गई हैं ।१२ ४१. पट्टिश१ 3-दोनों ओर से पार्श्वधार सहित करत्राणयुक्त खड्ग विशेष ।१४
इसे दोनों ओर से त्रिशूल सदृश शस्त्र भी माना जाता है ।१५ ४२. परिध ६-काष्ठनिर्मित चक्राकार शस्त्र विशेष जिसका परिमाण चार
१. वराङ्ग०, १७.७७; द्विस०, ६.२७; प्रद्यु०, १०.८; चन्द्र०, १५.२१७;
जयन्त०, १४.७७; हम्मीर०, १०.५१ २. नीति०, ५.२६ ३. वही, ५.३४ ४. वराङ्ग०, १४.१५; चन्द्र०, १५.१२७; हम्मीर०, ६.११४ ५. नीति० ५.३५ ६. Dikshitar, War in Ancient Indla, p. 114 ७. नीति०, ५३६ ८. अर्थशास्त्र, २.१८ ६. वराङ्ग०, १४.१५, सनत्कुमार०, २१.५५ १०. मजूमदार, भारतीय सेना का इतिहास, पृ० १२४ ११. Dikshitar, War In Ancient India, p. 114 १२. नीति०, ५.३८ १३. वराङ्ग०, १७.७७, हम्मीर०, ३.३२ १४. नीति०, ५.३६ १५. मजूमदार, भारतीय सेना का इतिहास, पृ० १२४ १६ वराङ्ग०, १८.१३, त्रिषष्टि०, ४.१.६६२