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युद्ध में 'बारूद' एवं 'एटमबम' का प्रयोग
श्राग्नेयास्त्र सम्बन्धी प्रायुषों सन्दर्भ में सामान्यतया यह धारणा प्रचलित है कि १६वीं शती ई० में सर्वप्रथम बावर ने ही युद्ध में 'तोप' तथा 'बारूद' का प्रवर्तन किया था। इसके विपरीत आग्नेयास्त्र सम्बन्धी प्राचीन भारतीय ग्रन्थों के उल्लेख यह सिद्ध करते हैं कि वैदिक काल से ही भारतीय आग्नेयास्त्र - 'शतघ्नी' अथवा 'सूर्मी' नामक ज्वलनशील आयुधों से थे । २ कृष्णयजुर्वेद में निर्दिष्ट ' शतघ्नी' अथवा 'सूर्मी' लोहनिर्मित ज्वलनशील अस्त्र के रूप में परिभाषित किए गये हैं । 3 प्रोप्पर्ट महोदय की सुदृढ़ मान्यता है कि वैदिक काल में ही भारतीय आग्नेयास्त्र का युद्ध में प्रयोग करते थे तथा इसके अस्तित्व के सम्बन्ध अब किसी प्रकार की भी शङ्का करना प्रयुक्तिसङ्गत है । ४
परिचित
जैन संस्कृत महाकाव्यों में भारतीय समाज
श्राग्नेयास्त्र निर्माण की रासायनिक विधियाँ — कौटिल्य के अर्थशास्त्र में (१) 'अग्निधारण' ( २ ) 'क्षेप्यो श्रग्नियोग' तथा (३) 'विश्वासघाती' नामक तीन प्रकार के ग्राग्नेयास्त्रों की विधियाँ दी गई हैं। पहली 'अग्निधारण' की प्रक्रिया के अन्तर्गत गधे, ऊँट, बकरी और भेड़ की लीद से तैयार छोटी-छोटी गोलियों को सरल, देवदारु की लकड़ियों तथा पूरी तृण, गुग्गुलु, श्रीवेष्टक और लाक्षा की पत्तियों के रासायनिक संयोग से पुष्ट किया जाता था । योग' की थी जिसमें प्रियाल चूर्ण, अवलगुज, कज्जल आदि के संयोग से घोड़े, गधे,
दूसरी प्रक्रिया 'क्षेप्यो अग्नि
१. मजूमदार, भारतीय सेना का इतिहास, पृ० ३५१
२. कृष्णयजुर्वेद, १.५.७.६
३. वही तथा तु० ' ज्वलन्ती लोहमयी स्थूणा सूर्मी' । ( भट्टभास्करकृत ज्ञानयज्ञ टीका) 'ज्वलन्ती लोहमयी स्थूणा सूम सा च कर्णकावती छिद्रवती अतएव ज्वलन्तीत्यर्थः --एकेन प्रहारेण शतसङ्खयान् मारयन्तश्शूराश्शत तर्हाः ' ( विद्यारण्यस्वामीकृत तैत्तिरीयवेदार्थ प्रकाशटीका)
४.
'The weight of these Vedic verses and of their commentaries can hardly be overrated, as they clearly establish the existence of ancient fire arms in the earliest time of Indian history.'– Oppert, Gustav, Nitiprakasika (Reprint) Delhi, 1985, Intr. p. 12
५. Dikshitar, War in Ancient India, p. 102 ६. वही, पृ० १०२