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सैन्य एवं युद्ध व्यवस्था
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से बचाने की नीति सुझाता है। पूरे मन्त्रिमण्डल ने इन दोनों पक्षों के बीच का मार्ग निकाला और राजा को यह सुझाया कि 'भेद' नीति का आश्रय लेना ही हितकर होगा । इस तीसरे प्रस्ताव का अनुमोदन सभी मन्त्रिमण्डल के सदस्यों ने किया तथा राजा पृथ्वीपाल से एक मास का समय मांग लिया गया।' इस एक मास में पृथ्वीपाल के साथ 'भेद' नीति का व्यवहार कर उसे निर्बल बनाया जा सकता था। अभिप्राय यह है कि अपनी शक्ति पर पूरा विश्वास न होने तथा शत्रु की शक्ति का भी अनुमान न होने की स्थिति में 'साम-दण्ड' की द्विविध नीति से शत्रु को क्षण किया जा सकता था । इस प्रकार उसे युद्ध परास्त करना भी सहज था । " पद्मनाभ के मुख्यमंत्री ने इसी राजनैतिक उद्देश्य से पृथ्वीपाल से एक मास का समय मांगा। 3
सैन्य प्रशासकीय व्यवस्था
जैन संस्कृत महाकाव्यों में महामात्य, ४ मंत्री, सेनापति, पुरोहित, ५ सान्धिविग्रहिक दूत श्रादि सेना के शासकीय उच्चाधिकारियों का प्रसङ्गमात्र से उल्लेख आया है । तत्कालीन विभिन्न राजवंशों की सैनिक व्यवस्थाओं में से राष्ट्रकूट एवं चालुक्य काल में सेना का उच्चाधिकारी 'दण्डनायक' था, १० जो प्रधान सेनापति के रूप में भी कार्य करता था । ११ वैसे चालुक्य राजा कुमारपाल एक प्रकार से प्रधान सेनापति भी था किन्तु सेना का सम्पूर्ण उत्तरदायित्व 'दण्डनायक' पर ही आता था । राष्ट्रकूट तथा चालुक्य काल में एक महत्त्वपूर्ण पद 'सान्धिविग्रहिक' का भी था जो परराष्ट्र मन्त्री के रूप में कार्यभार संभालता था,
१. चन्द्र०, १२.१०४-१११
२ . वही, १२.१०५.१०६
३. वही, १२.११०
४. द्वया०, ६.२६
५. वराङ्ग०, १५.२
६. चन्द्र०, १५.७१
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७.
द्वया०, ३.८०
८. वही, ६.४०
६. वरांग०, १६.१२, तथा चन्द्र०, ६.८६
१०.
Altekar, A.S., Rastrakutas And their times, Poona, 1967, p. 163 तथा लक्ष्मीशङ्कर व्यास, चौलुक्य कुमारपाल, पृ० १४६
११. व्यास, चौलुक्य कुमारपाल, पृ० १३८