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जैन संस्कृत महाकाव्यों में भारतीय समाज
राजपरिवार के उच्चाधिकारियों की स्त्रियाँ युद्ध में साथ-साथ जाती थीं ।
गणिकाएं तथा वेश्याएं
सैनिक भी अपनी स्त्रियों को युद्ध में साथ ले जाते थे । भी युद्ध में सेना के साथ ही चलती थीं।
युद्ध प्रयारण सम्बन्धी अनुशासनहीनता
जैन संस्कृत महाकायों में सेना में युद्ध प्रयाण सम्बन्धी अनुशासनहीनता के उल्लेख भी प्राप्त होते हैं यथा - हाथियों तथा अश्वों के चलते समय छोटे बच्चों का कुचला जाना । 3 नागरिकों का हाथी भय से घबराकर नीचे गिर जाना, ४ सेना के हाथियों, ऊँटों तथा खच्चरों में पारस्परिक टकराव होना आदि । ऐतिहासिक दृष्टि से भी विचार किया जाए तो ज्ञात होता है कि हर्षवर्धन - काल के अन्तिम समय में सेना इस प्रकार की उद्दण्डता के लिए प्रसिद्ध हो चुकी थी । ६ सेनाप्रयाण के समय भीड़-भाड़ में जनता को पर्याप्त क्षति उठानी पड़ती थी । छोटीछोटी बस्तियां तहस-नहस हो जाती थीं। इस कारण से सेना के इस दुर्व्यवहार के कारण प्रजा में राजा के प्रति असन्तोष का उदय भी होने लगा था।
सैनिक शिविर व्यवस्था
सैनिक तथा घोड़े - हाथियों के विश्राम के लिए मार्ग में छोटे पड़ाव डाले जाते थे । पड़ाव डालने के लिए प्रायः पर्वत तथा वनों के प्रदेश उपयुक्त समझे जाते थे । सुन्दर एवं प्राकृतिक दृश्यों से युक्त पर्वत प्रदेशों पर सैनिक पड़ाव डालने के दो मुख्य उद्देश्य होता थे— एक तो सैन्य सुरक्षा की दृष्टि से यह स्थान उपयुक्त होता था, दूसरे राजा एवं सेना ऐसे स्थानों पर ठहरकर पर्वत, नदी, झरनों आदि
१. बालभिः कुचमुजपीडिता युवानस्तद्भूयः स्थपुटदरीषु पानमीषुः । — द्विस०, २. वेश्या गणाः परिचितानुपचार हेतोरध्वश्रमातुरतनूननुपालयन्तः ।
३. वराङ्ग०, २०.५७, चन्द्र०, १३.६
४. चन्द्र०, १३.६०
५. वही, १३.२७ - २६
६. मजूमदार, भारतीय सेना का इतिहास, पृ० २२३
७. वही, पृ० २२३-२४
८.
चन्द्र०, १३.५३, द्विसं०, १४.३६
१४.१२
- चन्द्र०, १४.४७