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जैन संस्कृत महाकाव्यों में भारतीय समाज
१६. तोमर'-अर्थशास्त्र के टीकाकारों ने इसे बाण सदृश शस्त्र बताया है ।
दो प्रकार के तोमरों का उल्लेख मिलता है लोहे की गदा सदृश तोमर तथा काष्ठदण्ड युक्त कुन्तसदृश तोमर । वराङ्गचरित में भाले (कुन्त) और तोमर भिन्न-भिन्न शस्त्र थे।४ नीतिप्रकाशिका के अनुसार मोटे गुच्छ वाला तीन हाथ लम्बा तोमर तीन प्रकार के 'उद्धान' 'विनिवृत्ति' तथा 'वेधन' कार्यों में प्रयुक्त किया जा सकता था । कौटिल्य के टीकाकारों के अनुसार 'साधारण', 'मध्यम' और 'उत्तम' तोमर के तीन भेद थे जो क्रमशः ४, ४३, और ५ हाथ लम्बे होते थे । अग्निपुराण के अनुसार शत्रु की आँख एवं हाथ पर प्रहार करने की दृष्टि से यह अत्यन्त उपयोगी शस्त्र रहा था। होपकिन्स ने इसकी
त्रिशूल सदृश प्राकृति की सम्भावना की है। १७. लगुड-दण्ड सहश शस्त्र जिसका पाद भाग सूक्ष्म एवं उर्ध्व भाग चौड़ा
और लौह-निर्मित होता था। दो हाथ लम्बे इस प्रायुध की 'उत्थान', 'पतन', 'पेषण' तथा 'पोथन' चार गतियाँ कही गई हैं । १० दीक्षितार महोदय ने 'भिन्दिपाल' के समान इसके प्रयोग होने की सम्भावना भी बताई है।११
१८. पाश१२-शत्रु को बाँधने के प्रयोग में लाया जाने वाला 'पाश' नामक शस्त्र
प्राकृति से त्रिकोणात्मक था । 'सीसगुलिका' से अलंकृत 'पाश' 'प्रसारण' 'वेष्टन' और 'कर्तन' के कार्यों में प्रधानतया प्रयुक्त किया
१. वराङ्ग०, १३.१५, जयन्त०, १०.६५ २. अर्थशास्त्र (हिन्दी अनुवाद) रामतेज पाण्डेय, पृ० १८० ३. Dikshitar, War in Ancient India, p. 107 ४. वराङ्ग०, १४.१५ ५. नीतिप्रकाशिका, ४.३८.३६ ६. Dikshitar, War in Ancient India, p. 107 ७. वही, पृ० १०७ ८. Hopkins, J. A. O. S. Vol. 13, p. 291 ६. हम्मीर०, ३.३७, १०.४१ १०. नीति०, ४.४२-४३ ११. Dikshitar, War in Ancient India, p. 108 १२. वराङ्ग०, १७.५२; द्विस०, ६.२७