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जैन संस्कृत महाकाव्यों में भारतीय समाज
हुई स्त्रियों को देखना' आदि शुभ शकुन माने जाते थे। इसके विपरीत दायीं ओर शृगाली का शब्द करना, छींक आना, सांप का रास्ता काटना, कांटे वाले वृक्ष पर कौए का कर्कश स्वर होना, घोड़े की पूंछ पर आग लगना तथा प्रतिकूल वायु का बहना आदि अपशकुन माने जाते थे।
हर्षवर्धन के समय में ही सेना में अन्धविश्वास जड़ पकड़ गया था। हर्षचरित के अनुसार हर्ष की सेना-प्रयाण के समय तीन अपशकुन हुए-हिरण बाई ओर से निकला, कौना सूर्य की ओर मुख करके सूखे पेड़ पर बैठकर कर्कश स्वर करने लगा तथा नग्न साधु सामने दिखाई पड़ा।४ हर्षचरित में शत्रुओं में होने वाले अपशकुनों की विस्तृत तालिका दी गई है ।
इस प्रकार शकुन-अपशकुनों का सेना की विजय अथवा पराजय पर प्रभाव पड़ने जैसी मान्यतायें समाज में प्रचलित थीं। पुरोहित वर्ग राजा तथा सेना को समय समय पर शुभ मुहूर्तों तथा शुभ-अवसरों की सूचना देता रहता था। युद्ध प्रयारण तथा सेना-सञ्चालन
सेना प्रयाण के समय नगरवासी जन भी कुछ दूर तक सेना के साथ जाते थे। युद्ध में जाने वाले उच्चाधिकारियों में प्राय: राजा, युवराज, अमात्य, महामात्य, सेनापति, पुरोहित आदि मुख्य थे । युद्ध प्रयाण के समय सेना-सञ्चालन के क्रम के विषय में वराङ्गचरित के अनुसार आगे चतुरङ्गिणी सेना चलती थी तदनन्तर राजा अथवा राजकुमार का रथ चलता था। उसके बाद शस्त्र-अस्त्रों तथा अन्य उपकरणों से युक्त वाहन चलते थे। इन वाहनों के पीछे राजकुल की स्त्रियां पालिकाओं में चलती थीं । पुनः इन राजकुल की स्त्रियों को चारों ओर से घेरकर सैनिक चलते थे। पर्वत गफानों तथा भीषण वनों में भी राजा तथा राजपरिवार जैसे महत्त्वपूर्ण लोगों के दाएं-बाएं, आगे-पीछे सैनिक सुरक्षा की समुचित
१. हम्मीर०, १२.२६ २. चन्द्र०, १५.३२-३४ ३. मजूमदार, भारतीय सेना का इतिहास, पृ० २२६ ४. हर्षचरित, पृ० १५२ ५. वासुदेव शरण अग्रवाल, हर्षचरित एक सांस्कृतिक अध्ययन, पृ० १३४-३५ ६. भारतीय सेना का इतिहास, पृ० २२८ ७. वराङ्ग०, २०.५८ ८. वही, १५.२ ६. वही, २०.५६-६० .