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राजनैतिक शासन तन्त्र एवं राज्य व्यवस्था
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में पुष्पदन्त का राजा नरेन्द्र के निजी 'महत्तर' नन्न के निवास स्थान पर रहने का उल्लेख मिलता है । 'महत्तर' नन्न मंत्री भरत का पुत्र था तथा अपने पिता के उपरान्त वह ही मंत्री पद पर आसीन हुआ । " इस उल्लेख से ज्ञात होता है कि दशवीं शताब्दी ई० में दक्षिण भारत के राष्ट्रकूट शासन में 'महत्तर' पद एक गौरवपूर्ण पद हो गया था जो मंत्री पद से थोड़ा ही कम महत्त्वपूर्ण रहा
होगा ।
६. हरिषेणकृत बृहत्कथाकोश (१०वीं शताब्दी ई० ) में अशोक नामक धनाढ्य 'महत्तर' द्वारा गोकुल की भूमि अधिग्रहण करने के एवज में प्रतिवर्ष एक हजार घी के घड़े राजा को देने की शर्त का उल्लेख आया है । अशोक नामक इस 'महत्तर' ने अपनी दोनों पत्नियों को संतुष्ट करने के लिये गोकुल को दो भागों में विभक्त कर प्रत्येक पत्नी को पांच सौ घी के घड़े देने का दायित्व सौंप दिया । ३ बृहत्कथा के इस उल्लेख से यह स्पष्ट हो जाता है कि 'महत्तर' पद राजा द्वारा किन्हीं शर्तों पर दिया जाने वाला पद विशेष रहा होगा। ग्राम सङ्गठन के सन्दर्भ में 'महत्तर' अपने काम को आसान बनाने के लिए अपनी पत्नियों अथवा अन्य लोगों को भागीदार बना लेते थे । अशोक नामक 'महत्तर' की दो पत्नियों को आधे-आधे ग्राम का स्वामी बना देने का वृत्तान्त भी ग्राम सङ्गठन के सामन्तवादी ढांचे को विशद करता है । बृहत्कथाकोश में 'महत्तरिका' 3 का भी उल्लेख आया है जो संभवत: 'महत्तरक' की पत्नी हो सकती है जिस पर सम्भवतः प्रशासनिक जिम्मेवारी भी रहती थी । बृहत्कथाकोश में एक अन्य स्थान पर राजदरबार में भी 'महत्तरों' की उपस्थिति कही गई है जो
१.
पुष्पदन्तकृत जसहरचरिउ, भूमिका, पृ०
२. तु० - वाराणसमीपे च गङ्गारोधसि सुन्दरः । पलाशोपपदः कूटो ग्रामो बहुधनोऽभवत् ।। आसीदशोकनामाऽत्र ग्रामे बहुधनो धनी । महत्तरोऽस्य भार्या च नन्दा तन्मानसप्रिया ॥ वृषभध्वजभूपाय घृतकुम्भसहस्रकम् । वर्षे वर्षे प्रदायास्ते भुञ्जानो गोकुलानि स ।। दृष्ट्वा अशोको महाराटि तथा नन्दासुनन्दयोः । अर्धागोकुलं कृत्वा ददौ कार्यविचक्षणः ॥
- बृहत्कथाकोश, सम्पा० ए० एन० उपाध्ये, बम्बई, १९.४३, २१.३-४; २१.७-८
— वही, ७३.५३
३. तु० - मीनोपी पपाताशु तन्महत्तरिका वरा ।