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राजनैतिक शासन तन्त्र एवं राज्य व्यवस्था
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कुछ विशेष वर्ग के किसान थे जो विभिन्न कुलों तथा परिवारों के मुखिया के रूप में ग्राम सङ्गठन से सम्बद्ध थे। उसके उपरान्त 'उत्तम' नामक ग्रामाधिकारियों का स्थान प्राता था जो संभवतः 'कुटुम्बी' से बड़े होने के कारण 'उत्तम' कहलाते थे। इन 'उत्तम' नामक ग्रामाधिकारियों के ऊपर 'महत्तम' का पद रहा था। पालवंशीय शासन व्यवस्था में इन विभिन्न पदाधिकारियों के क्रम को इस प्रकार रखा जा सकता है
क्षेत्रकर> कुटुम्बी> उत्तम> महत्तम 'उत्तम' नामक एक नवीन पदाधिकारी के अस्तित्व से 'महत्तर' के पूर्व प्रचलित पद को धक्का ही नहीं लगा अपितु इसके अर्थ का अवमूल्यन भी होता चला गया । भारतवर्ष के कुछ भागों, विशेषकर उत्तरपूर्वी प्रान्तों तथा कश्मीर आदि प्रदेशों मे 'महत्तर' तथा 'महत्तम' दोनों का प्रयोग मिलता है किन्तु 'महत्तर' अन्तःपुर के रक्षक (chamberlain) के लिए प्रयुक्त हुआ है जबकि 'महत्तम' शासन व्यवस्था के महत्त्वपूर्ण व्यक्ति के लिए आया है।' कथासरित्सार में भी ‘महत्तर' अन्तःपुर के रक्षक के रूप में ही निर्दिष्ट है। किन्तु गुजरात दक्षिण भारत आदि प्रान्तों में 'महत्तर' के अवमूल्यन का कम प्रभाव पड़ा तथा वहाँ १२वीं शताब्दी ई० तक भी 'महत्तर' को ग्राम सङ्गठन के अधिकारी के रूप में ही मान्यता प्राप्त थी। १२वीं शताब्दी ई. के उपरान्त 'महत्तर' एवं 'महत्तम' पदों के प्रशासकीय पदों की लोकप्रियता कम होती गई तथा इसकी देशी संज्ञाएँ 'मेहरा', 'मेहेर', 'मेहरू', 'महतो'
आदि वंश अथवा जाति के रूप में रूढ़ होती चली गईं। इन जातियों में किसी वर्ण विशेष का आग्रह यद्यपि नहीं था तथापि शूद्र एवं निम्न वर्ण की जातियों का इनमें प्राधान्य रहा था। इसका कारण यह है कि मध्यकाल में इन जातियों से सम्बद्ध लोग ग्राम सङ्गठन के मुखिया रहे थे एवं राजकीय महत्त्व के कारण भी उनकी विशेष भूमिका रही थी। फलत: इन महत्तरों की आने वाली पीढ़ियों के लिए 'महत्तर' तथा उससे सम्बद्ध 'मेहरा', 'महतो' आदि सम्बोधन गरिमा का विषय था । यही कारण है कि वर्तमानकाल में भी महत्तर महत्तम के अवशेष विभिन्न जातियों के रूप में सुरक्षित हैं। आर्थिक दृष्टि से इनमें कई जातियाँ अाज निर्धन कृषक जातियाँ है किन्तु किसी समय में इन जातियों के पूर्वज भारतीय ग्रामीण शासन व्यवस्था के महत्त्वपूर्ण पदों को धारण करते थे। ठीक यही सिद्धान्त ११वीं-१२वीं शती ई. के 'पट्टकिल'२ तथा आधुनिक 'पटेल' अथवा 'पाटिल', मध्यकालीन 'गोन्ड'3 तथा आधुनिक 'गौड़'; मध्यकालीन 'कुटुम्बी', आधुनिक 'कुन्वी', 'कुमि'
१. राजतरङ्गिणी, ८.६५६ तथा ७.४३८ २. Sharma, R.S., Social Changes in Early Medieval India, p. 10 ३. वही, पृ० १०