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राजन तिक शासन तन्त्र एवं राज्य व्यवस्था
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इतिहासकार 'दण्डनायक' के विषय में एक मत नहीं। नेमिचन्द्र शास्त्री के मतानुसार जैन संस्कृत महाकाव्यों में उपलब्ध 'दण्डनायक' 'न्यायाधीश' होता था जो सम्पूर्ण विवादों की पर्यालोचना कर निर्णय देता था ।' नारङ्ग महोदय ने द्वयाश्रय के 'दण्ड नेत्र' को 'दण्ड नायक के समकक्ष स्वीकार करते हुए अभय तिलक गणि द्वारा 'दण्डनेत्र' के 'सेनानी' अर्थ को स्वीकार किया है ।२ प्रो० दशरथ शर्मा ने हम्भीर महाकाव्य के 'दण्डनायक' को 'Commander of the forces' के रूप में स्पष्ट किया है ।3 वराङ्गचरित महाकाव्य में सेना के उच्चाधिकारी के लिए ही 'दण्डनायक'४ तथा 'दण्डनाथ'५ का प्रयोग हुआ है। इसी प्रकार हम्मीर० के 'दण्डनायक' रतिपाल का भी सेना के उच्चाधिकारी के रूप में ही वर्णन किया गया है न कि 'न्यायाधीश' के रूप में । ६ वरांगचरित में उपर्युक्त 'दण्ड नाथ' का युद्ध के प्रसंग में उल्लेख होने तथा सेनापति के लिए 'चमूप' का प्रयोग होने के कारण स्पष्ट हो जाता है कि 'दण्डनायक' अथवा 'दण्डनाथ' सेना के उच्चाधिकारी होते थे किन्तु इनका पद 'सेनापति' से कुछ न्यून होता था । 'दण्डनायकाः' तथा 'दण्डनाथान्'
आदि बहुवचनान्त प्रयोग यह सिद्ध करते हैं कि राज्य की सेना में इस प्रकार के पदाधिकारी अनेक होते थे जो संभवतः सेना के पृथक्-पृथक् अङ्गों का दायित्व संभालते थे । किन्तु 'सेनापति' (चमूप, चमूपति) पद केवल मात्र एक ही होता था । इसी प्रकार द्वयाश्रय के 'दण्डनेत्र' की अभयतिलक द्वारा 'सेनानी' के रूप में व्याख्या करना भी 'दण्डनायक' को सैन्य व्यवस्था से सम्बद्ध करता है न कि म्यायव्यवस्था से । नेमिनिर्वाण में 'दण्डधर' का प्रयोग हुआ है। इस प्रकार
१. नेमिचन्द्र शास्त्री, संस्कृत काव्य० पृ० ५२६
Narang, Dvayāśryakāvya, p. 174 ३. After that Hammir appointed Ratipāla as his 'dandanāyaka'
(Commander of the forces). -Sharma, Rajasthan Through the
Ages, p. 628 ४. तु०-राजानो राजपुत्राश्च मन्त्रिणो दण्डनायकाः ।
भोजका भृत्यवर्गाश्च ये राज्ञा सह निर्गताः ।। -वरांग०, १५.२ ५. तु०-पाहूय मन्त्रीश्वरदण्डनाथान् संनह्यतेत्याशु शशास योद्धम् ।
-वरांग०, १७.१० ६. तु०-तस्मिन् गते क्षितिपतिः प्रसरत्प्रमोदहृद् दण्डनायकपदे रतिपालवीरम् ।
-हम्मीर०, ६.१८८ ७. तु०-चमूपमन्त्रीश्वरराजपुत्राः। -वरांग०, १७.१४ ८. नेमि०, ६.१०