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राजनैतिक शासन तन्त्र एवं राज्य व्यवस्था
'सेनापति' पर ही था । राजा जब कभी सेना के सम्बन्ध में जो कुछ प्राज्ञा देना चाहता था तो वह 'सेनापति' के माध्यम से ही संभव हो पाता था ।' सेना सञ्चालन का प्रमुख अधिकारी भी 'सेनापति' ही था। 'सेनापति' के अधीन चारों प्रकार की सेनाएं (चतुरङ्गबल) होती थीं। युद्ध के अवसर 'सेनापति' के विशेष दायित्व थे । 'सेनापति' शत्रु-सेना तथा स्व-सेना की गतिविधियों एवं उपलब्धियों पर विशेष ध्यान रखता था और जब वह देखे कि उसकी सेना हतोत्साहित हो रही है तो ऐसे अवसर पर 'सेनापति' स्वयं युद्ध में कूदकर अपने रणकौशल का परिचय देते हुए अपनी सेना को विशेष उत्साहित करता था । युद्ध के समाप्त हो जाने पर योद्धानों की मृत्यु प्रादि की सूचनाओं को एकत्र करने के लिए 'सेनापति' रणक्षेत्र का निरीक्षण भी करता था।
४. पुरोहित (पुरोधस्)-प्राचीनकाल से चला आ रहा एक महत्त्वपूर्ण पद है। 'पुरोहित' राजा को धार्मिक, ज्योतिषीय तथा अन्य करणीय अथवा प्रकरणीय कार्यों के प्रति मार्गदर्शन कराता था। जैन संस्कृत महाकाव्यों में भी 'पुरोहित' अथवा 'पुरोधस्' का राज्य में विशेष महत्त्व था ।५ विविध अवसरों पर 'पुरोहित' ग्रह नक्षत्र आदि से राजा को अवगत कराता था । युद्ध प्रयाण के अवसर पर भी 'पुरोहित'
१. तु०-सेनापतिं समादिश्य सेनामावासेयेति सः।-चन्द्र०, २.३४ २. पतिं चमूनां सुषेणम् ।-धर्म०, १७.१०७, तथा
चतुरङ्गबले तत्र परिसर्पति शात्रवे ।
सैन्यमाश्वासयामास व्याकुलं एवं चम्पतिः ।।-धर्म०, १६.७६.७७ ३. धर्म०, १६.७७-७८ ४. सुषेणः शोधयामास रणमिं महाबलः । -धर्म०, १६.६५
'Hammira is advised by purohita Viśvarūpa, Khandadeva by Soma chandra vyāsa who has as much influence as many other minister or perhaps a little more, thus for various reasons sacredotal influence appears to have been on the increase during this period.
-Sharma, Rajasthan Through the Ages, p. 705. Puri, History of Indian Adm., Vol. I, p. 77, fn. 22 तथा, तु०-पुरोहितामात्यताहितारम्भाः । -पद्मा०, ४.२० तथा पुरा पुरोधास्तदनु क्षितीन्दुपास्ततोऽन्ये सचिवास्ततश्च । ततो महेभ्यास्तदनु प्रजाश्च तस्याभिषेक रचयांबभूवुः ॥-हम्मीर०, ८.५७ राजा मुहूर्त मङ्गल्ये पुरोधः कृतमङ्गलः ।। दिग्यात्रायै गजरत्नमारुरोह ॥-त्रिषष्टि०, २.४.३३