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राजनैतिक शासन तन्त्र एवं राज्य व्यवस्था
मादि
'समस्तराजावलि', 'गुर्जरधराधीश्वर', 'परमाहत', 'उमापतिवरलब्ध' उपाधियों से सम्बोधित किया गया है।'
सामन्त पद्धति
मध्यकालीन राज्य व्यवस्था के सन्दर्भ में 'सामन्त' एक महत्त्वपूर्ण पारिभाषिक शब्द माना गया है । अश्वघोष कृत सौन्दरनन्द (२.४५) तथा कालिदास कृत रघुवंश (५.२८, ६.३३) में 'सामन्त' शब्द का इसी पारिभाषिक अर्थ में प्रयोग हुआ है । बाण के हर्षचरित के समय तक सामन्त व्यवस्था एक राजनैतिक पृष्ठभूमि में विशेष रूढ़ हो चुकी थी। आलोच्य युग में 'सामन्त पद्धति' उत्तरोत्तर वृद्धि पर थी। वराङ्गचरित में मथुराधिप इन्द्रसेन तथा उसके पुत्र उपेन्द्रसेन द्वारा समीपवर्ती सभी 'सामन्त' राजानों को अपने अधीन कर लेने का उल्लेख पाया है। इन 'सामन्त' राजाओं ने भी मथुराधिप की प्रभुता शिरोधार्य कर ली थी। इसी महाकाव्य के एक महत्त्वपूर्ण उल्लेख से तत्कालीन सामन्त व्यवस्था का शोषणपरक रूप भी सामने आता है । प्रायः उद्दण्ड राजा सामन्त राजाओं से चापलूसी करवाते थे तथा इनकी सेना तथा कोष पर बलपूर्वक अधिकार जतलाते थे। सामन्त राजा भी ऐसे उद्दण्ड राजा के सामने अपना मस्तक नहीं उठा पाते थे तथा राजा को प्रसन्न करने के लिए अपनी प्रभुता का पट्टा इन राजाओं के हाथों से पहनते थे । चन्द्रप्रभचरित के उल्लेखानुसार राजा पद्मनाभ के राज्यारोहण करते ही सभी 'सामन्त' अथवा माण्डलिक राजाओं ने अपनी कुटिलता त्याग कर पद्मनाभ के आधिपत्य को नतमस्तक होकर स्वीकार किया ।५ चन्द्रप्रभचरित में ही यह भी उल्लेख मिलता है कि यदि राजा राज्यव्यवस्था को ढीला छोड़ देता है तो उसके सभी माण्ड लिक
१. लक्ष्मी शंकर व्यास, महान् चौलुक्य कुमारपाल, काशी, १९६२, पृ० ६४ २. विशेष द्रष्टव्य-वासुदेव शरण अग्रवाल, हर्षचरित एक सांस्कृतिक अध्ययन, ___ पटना, १९६४, परिशिष्ट-२, पृ० २२१-२४ तथा रामशरण शर्मा, भारतीय
सामन्तवाद, अनुवादक-आदित्य नारायण सिंह, दिल्ली, १९७३, पृ० १-२ ३. वराङ्ग०, १६.४-७ ४. तु०-समस्तसामन्तनिबद्धपट्टौ समस्तसामन्तमदावरोधौ ।
समस्तसामन्तगणातिधैयौं बभूवतुश्चन्द्रदिवाकराभौ ॥ शौर्योद्धतावप्रतिकोशदण्डो गृहीतसामन्तसमस्तसारी ।
-वराङ्ग०, १६.६-७ ५. चन्द्र०, १.८२