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राजनैतिक शासन तन्त्र एवं राज्य व्यवस्थां
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'यान', 'आसन', 'संश्रय' तथा 'द्वैधीभाव' इन छः गुणों का उल्लेख किया गया है । संक्षेप में 'संधि' श्रर्थात् दो राज्यों के मध्य सौहार्दपूर्ण एवं शान्तिपूर्ण सम्बन्ध, 'विग्रह' अर्थात् युद्ध, 'यान' (अथवा यात्रा ) अर्थात् युद्ध प्रयाण तथा शत्रु राजा के नगर को घेर लेना, 'आसन' श्रर्थात् युद्ध का कृत्रिम भय प्रदर्शित करना किन्तु स्वयं को असमर्थ देखकर युद्ध के प्रति निरुत्साही हो जाना, 'संश्रय' अर्थात् किसी अन्य शक्तिशाली राजा की शरण लेना तथा 'द्वैधीभाव' अर्थात् शत्रु से मित्रता एवं शत्रुता पूर्ण द्विविध सम्बन्धों का परराष्ट्र नीति की दृष्टि से विशेष महत्त्व है । ' वराङ्गचरित में राजा इन्द्रसेन के मन्त्रिमण्डल में इन छः नीतियों का व्यावहारिक स्वरूप विशेष रूप से उभर कर आया है । जैन संस्कृत महाकाव्यों में ' षाड्गुण्य' के देशकालानुसारी प्रयोग की आवश्यकता पर विशेष बल दिया गया है । 3 संभवतः ' षाड्गुण्य' राजनीति के सैद्धान्तिक पक्ष पर विशेष रूप से प्रकाश डालता है । दूसरे शब्दों में 'साम', 'दान', 'भेद', 'दण्ड', इन चतुविध उपायों का ' षाड्गुण्य' के अन्तर्गत ही अन्तर्भाव हो जाता है । यही कारण है कि भारतीय राजनीति शास्त्र के ग्रन्थों में तथा जैन संस्कृत महाकाव्यों में चतुविध उपायों को ' षाड्गुण्य' की अपेक्षा अधिक महत्त्व दिया गया है । इसके अतिरिक्त 'साम', 'दान' 'भेद', 'दण्ड' के व्यावहारिक प्रयोग के क्रमों तथा योग्यता आदि के विषय में भी निर्देश प्राप्त होते हैं, किन्तु ' षाड्गुण्य' के विषय में इस प्रकार के प्रायोगिक स्वरूप पर विशेष प्रकाश नहीं गया है ।
(५) चतुविध उपाय -
राजनीति शास्त्र के ग्रन्थों के निर्देशानुसार 'साम', 'दान', 'भेद' तथा 'दण्ड' इन चतुविध उपायों का परराष्ट्र नीति-निर्धारण में विशेष महत्त्व है । 'साम' के
१. तु० – तत्र परणबन्धः सन्धिः । अपकारो विग्रहः । उपेक्षणमासनम् । अभ्युच्चयो यानम् । परार्पणं संश्रयः । सन्धिविग्रहोपदानं द्वैधीभाव इति षड्गुणाः ।
—अर्थ०, ८.१.१-११ तथा विशेष द्रष्टव्य -
Jauhari, Manorama, Politics and Ethics In Ancient India Varanasi, 1968, pp. 192-99.
२. वराङ्ग०, १६.५०-७५
३. द्विस०, ११.१५, चन्द्र०, १२.१०४
४. महा०, आदि ० २०२.२०; मनु०, ८.१६८, अर्थ, २.१०