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साहित्य समाज और जैन संस्कृत महाकाव्य (१५) मुनिभद्रकृत शान्तिनाथचरित महाकाव्य (१४वीं शती ई०)
शान्तिनाथचरित महाकाव्य के रचयिता मुनिभद्र हैं । मुनिभद्र ने शान्तिनाथ चरित में ही रचनाकाल का उल्लेख किया है। इस प्रशस्ति के उल्लेखानुसार शान्तिनाथचरित का रचनाकाल वि० सं० १४१० अर्थात् सन् १३५३ ई० निश्चित है।' मुनिभद्र के विषय में भी यह प्रसिद्ध है कि तत्कालीन बादशाह फिरोजशाह तुगलक (१३५१-१३८८ ई०) इनका बहुत सम्मान करता था। - शान्तिनाथचरित महाकाव्य १६ सर्गों में लिखा गया है। १४वें सर्ग से लेकर १६वें सर्ग तक की कथावस्तु का सम्बन्ध तीर्थङ्कर शान्तिनाथ से है । शान्तिनाथचरित में महाकाव्य के सभी लक्षण विद्यमान हैं। प्रतिपाद्य विषयों में सन्ध्या-वर्णन, प्रातः काल वर्णन, सूर्योदय वर्णन, ऋतु वर्णन, पर्वत-वन-समुद्र आदि वर्णन, युद्ध वर्णन, संयोग वियोग वर्णन आदि मुख्य कहे जा सकते हैं। शन्तिनाथचरित भी अन्य जैन महाकाव्यों की भाँति कालिदास, भारवि, माघ, अश्वघोष आदि के महाकाव्यों से प्रभावित है।
(१६) नयचन्द्रसूरिकृत हम्मीर महाकाव्य (१४०० ई०)
नयचन्द्रसूरिकृत हम्मीर महाकाव्य के रचनाकाल के विषय में विद्वानों में मतभेद है । कवि नय चन्द्र तथा हम्मीर समसामयिक नहीं थे। हम्मीर महाकाव्य में यह उल्लेख मिलता है कि हम्मीर ने नयचन्द्र को स्वप्न में दर्शन दिए । इस घटना से नयचन्द्र सूरि को हम्मीर की शौर्य पूर्ण गाथाओं को महाकाव्य का रूप देने की प्रेरणा प्राप्त हुई ।४ श्रीअगरचन्द नाहटा के पास एक हम्मीर महाकाव्य की प्रतिलिपि सुरक्षित होने की सूचना प्राप्त होती है जिसका समय वि० स० १४८६ (सन् १४३० ई०) है। इस प्रकार हम्मीर महाकाव्य का समय १३६१ ई० से १४०० ई. के मध्य माना जाता है ।
हम्मीर महाकाव्य में चौदह सर्ग हैं । हिन्दू देवताओं एवं जैन तीर्थङ्करों से सम्बद्ध स्तुति से महाकाव्य का प्रारम्भ हुअा है। यह एक उल्लेखनीय विशेषता है
१. अन्तरिक्षरजनौहृदीश्वरब्रह्मवक्त्रशशिसंख्यवत्सरे । वैक्रमे शुचितयोजयातिथौ शान्तिनाथचरितं व्यरच्यत ।
-शान्तिनाथचरित, प्रशस्ति-१७ २. वही, प्रशस्ति३. नेमिचन्द्र शास्त्री, संस्कृत काव्य० पृ० २२६ ४. हम्मीर०, १४.२६ ५. नागरी प्रचारिणी पत्रिका, काशी, वर्ष ६४, पृ० ६७