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७.
जैन संस्कृत महाकाव्यों में भारतीय समान
इन्हीं राजनैतिक परिस्थितियों की पृष्ठभूमि में जैन संस्कृत महाकाव्यों से प्राप्त राजनैतिक वर्णनों का प्राकलन किया गया हैजैन संस्कृत महाकाव्यों में शासन तंत्र विषयक विचार१. सप्ताङ्ग राज्य
शासन तंत्र के सात अङ्ग स्वीकार किए गए हैं-१. स्वामी, २. ममात्य, ३. राष्ट्र अथवा जनपद, ४. दुर्ग, ५. कोष, ६. दण्ड तथा ७. मित्र ।' जैन संस्कृत महाकाव्यों में सिद्धान्त रूप से राज्य के सात अङ्गों को स्वीकार किया गया हैं। द्विसन्धान महाकाव्य के टीकाकार ने 'प्रकृतिषु सप्तसु स्थिति:' की व्याख्या करते हुए सप्ताङ्ग राज्य के अन्तर्गत इन्हीं अङ्गों को स्वीकार किया है जो प्राचीन राजनीति-शास्त्रज्ञों को भी मान्य थे। २. षड्विध बल
'षड्विध बल' की व्याख्या प्राय: छः प्रकार की सेनाओं के रूप में की जाती है। ये छः प्रकार की सेनाएं हैं-(१) 'मौल' (वंशपरम्परानुगत) (२) 'भूत', 'भृतक' या 'मृत्य' (वेतन भोगी सेना), (३) 'श्रेणी' (व्यापारियों या अन्य
१. तु०-(क) स्वाम्यमात्यजनपददुर्गकोशदण्डमित्राणि प्रकृतयः ।
-अर्थशास्त्र, ६.१ (ख) स्वाम्यमात्यो पुरं राष्टं कोशदण्डौ सुहृत्तथा। सप्तप्रकृतयो ह्य ताः सप्ताङ्गं राज्यमुच्यते ।।
-मनु०, ६.२६४ (ग) स्वाम्यमात्यः सुहुत्कोशो राष्ट्र दुर्ग तथा बलम् । प्राकृतं सप्तकं प्रोक्तं नीतिशास्त्रविशारदः ॥
-कामन्दकनीति, ४.१ २. तु०-(क) मृत्यांश्च मित्राण्यथ कोशदण्डानमात्यबर्गाजनतां च दुर्गान् ।
-वराङ्ग०, २६.४० (ख) अङ्गानि राज्यस्य महात्मना स्वयं, सप्तापि गोप्यानि सदाऽपि मन्त्रिणा।
-पद्मा०, ३.१०० (ग) सप्तकं स्थिराऽभवत् प्रकृतिषु सप्तसु स्थितिः ।
-द्विस०, २.११ (घ) राज्यं न सप्ताङ्गमिदं विधत्ते धर्माणि पुंसां गुणलालसान्तम् ।
-शान्ति०, २.१३४