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___ जैन संस्कृत महाकाव्यों में भारतीय समाज
कि नयचन्द्र यद्यपि जैन धर्मानुयायी था किन्तु हिन्दू धर्म के लोकप्रिय देव 'शिव' की प्रारम्भ में स्तुति करना तथा अपने महाकाव्य के नायक के रूप में चाहमान वंशीय हम्मीर के उदात्त एवं शौर्यपूर्ण गाथा का चित्रण करना कवि की सहिष्णुता एवं उदारता का प्रतीक है । महाकाव्य में नगर, समुद्र, वन, प्रातःकाल, सन्ध्या, चन्द्रोदय ऋतुवर्णन, पुत्रोत्पत्ति, सुरतोत्सव, मन्त्रणा, सैन्य सञ्चालन, एवं घमासान युद्ध के वर्णन हुए हैं । हम्मीर महाकाव्य को 'वीराङ्क' की संज्ञा दी गई है ।' संभवत: यह 'वीर' संज्ञा द्वयर्थक हो, प्रथम, हम्मीर के वीरतापूर्ण कृत्यों का प्रतीक रहा होगा, दूसरे, कवि ने अपने प्राश्रयदाता 'वीरम्' को प्रसन्न करने के लिए 'वीर' शब्द का प्रयोग किया हो। इस प्रकार 'लक्ष्म्य' 'थ्रयङ्क' प्रादि महाकाव्यों से प्रेरित होकर कवि ने हम्मीर महाकाव्य को 'वीराङ्क' की संज्ञा दी है। निष्कर्ष
___ इस प्रकार प्रस्तुत प्रस्तावना अध्याय में दो मुख्य समस्याओं पर विचार किया गया है। प्रथम समस्या साहित्य में सामाजिक परिस्थितियों के अन्वेषण के
औचित्य से सम्बद्ध है तो द्वितीय समस्या शोध प्रबन्ध के मूल स्रोत-ग्रन्थों जैन संस्कृत महाकाव्यों की परिचयात्मक पृष्ठभूमि से सम्बद्ध है। इन दोनों समस्याओं को मध्य रखते हुए जैन संस्कृत महाकाव्यों के सांस्कृतिक अध्ययन की दृष्टि से निम्नलिखित तथ्यों का प्रतिपादन किया जा सकता है--
१. साहित्य की महत्त्वपूर्ण विधा महाकाव्य समाज-शास्त्रीय मूल्यों तथा युगोन सामाजिक परिस्थितियों के प्रति सदैव चेतनशील रहती है।
२. सामाजिक परिस्थितियां समाज की राजनैतिक, भौगोलिक, आर्थिक, धार्मिक, शैक्षिक आदि वातावरणों से एकीभूत होकर प्रभावित होती हैं।
३. जैन संस्कृत महाकाव्य भी जैन संस्कृति की सामुदायिक वर्ग चेतना से प्रभावित होकर निर्मित हुए हैं।
४. महाकाव्य विकास की विश्वजनीन प्रवृत्ति के अनुरूप ही प्राचीन भारतीय महाकाव्य परम्परा समाजोन्मुखी दिशा में निर्मित हुई तथा जैन संस्कृत महाकाव्यों का भी इसी सन्दर्भ में मूल्यांकन किया जा सकता है।
५. ८वीं शताब्दी ई० से १४वीं शताब्दी ई० तक के सामन्तयुगीन मध्यकालीन भारत से सम्बद्ध लगभग १६ जैन संस्कृत महाकाव्य महाकाव्य के शास्त्रीय लक्षणों की दृष्टि से सफल महाकाव्य होने के साथ-साथ युगीन चेतना के अनुरूप सामाजिक परिस्थितियों से प्रभावित थे । ये जैन महाकाव्य मध्यकालीन भारतीय समाज के राजनैतिक, आर्थिक, भौगोलिक, धार्मिक, शैक्षिक, दार्शनिक प्रादि विविध पक्षों पर महत्त्वपूर्ण प्रकाश डालते हैं। १. चक्राणं काव्यमेतन्नृपतिततिमुदे चारुवीराङ्करम्यम् ।
-हम्मीर०, १४.२६