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साहित्य समाज श्रौर जैन संस्कृत महाकाव्य
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है । ' कुल मिलाकर जयन्त विजय महाकाव्य रस- अलङ्कार के सफलता पूर्वक नियोजन में तथा नाटकीय पंचसन्धियों के विन्यास में भी सफल रहा है । महाकाव्य का कथानक अधिकांश रूप से कवि की कल्पना का परिणाम है फिर भी इसका शिल्पविधान पौराणिक महाकाव्यों की परम्परा के अनुरूप ही विकसित हुआ है ।
(११) वस्तुपालकृत नरनारायणानन्द महाकाव्य ( १३वीं शती ई० ) -
महामात्य वस्तुपाल कृत नरनारायणानन्द महाकाव्य की रचना संभवतः सन् १२३०-३१ ई० में हुई होगी । वस्तुपाल ने सन् १२२१, १२३४, १२३५, १२३६ और १२३७ ई० में गिरनार के लिए यात्रा संघ निकाले थे । २
१६ सर्गों वाले नरनारायणानन्द महाकाव्य का प्रारम्भ द्वारावती नगर के वर्णन से हुआ है । महाकाव्य के वर्ण्य विषयों में नगर, ऋतु, सूर्योदय, चन्द्रोदय, वन, सुरापान, रतिक्रीड़ा, जलक्रीड़ा, पुष्पावचय, विवाह, विप्रलम्भ, सैन्य निवेश, युद्ध वर्णन आदि प्रमुख हैं । भारवि के किरातार्जुनीय के समान महाकाव्य के चतुर्दश सर्ग में एकाक्षर, द्वयक्षर तथा गोमूत्रिका, मुरज, सर्वतोभद्र, खड्गबन्ध आदि विविध चित्रकाव्यों की योजना की गई है । 3 महाकाव्य में अर्जुन, श्रीकृष्ण, सुभद्रा, बलराम आदि प्रमुख पात्र हैं । अर्जुन महाकाव्य का नायक है और बलराम प्रतिनायक ।
(१२) अमरचन्द्रकृत पद्मानन्द महाकाव्य ( १३वीं शती ई० ) -
महाकवि अमरचन्द्रसूरि गुर्जरेश्वर वीसलदेव के सभापण्डित थे । वीसलदेव का राज्यकाल १२४३-१२६१ ई० था । ४ महामात्य वस्तुपाल तथा अमरचन्द्रसूरि समकालिक थे । इसके अतिरिक्त पाटण के टांगदियावाड़ा के जैन मन्दिर में अमरचन्द्रसूरि की प्रतिमा विद्यमान है जो संभवतः इनकी मृत्यु के उपरान्त लगाई गई थी । उस प्रतिमा में उत्कीर्ण लेख के अनुसार भी श्रमरचन्द्रसूरि की मृत्यु १२६२
१. तु० - महाकवीनामपि नव्यकाव्ये दोषाः कदाचित् किल संभविष्णुः । प्रमादनिद्रोदयमुद्रया हि क्रोडीक्रियन्ते सुधियां धियोऽपि ॥
जयन्ति ते सत्कवयो यदुक्त्या बाला अपि श्रीखण्डवासेन कृताधिवासाः श्रीखण्डतां
२. नेमिचन्द्र शास्त्री, संस्कृत काव्य०, पृ० ३३०
३. नरनारायणानन्द, सर्ग - १४
४. पद्मानन्द महाकाव्य, भूमिका, पृ० ३४
स्युः कविताप्रवीणाः । यान्त्यपरेऽपि वृक्षाः ॥
- जयन्त०, १.६; १.१७