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मैन संस्कृत महाकायों में भारतीय समाज ई० के पूर्व ही हो चुकी थी।' इन तथ्यों के आधार पर अमरचन्द्रसूरि का समय तेरहवीं शती का उत्तरार्ध निश्चित होता है।
इस महाकाव्य में १६ सर्ग हैं जिनमें महच्चरित के रूप में ऋषभदेव का जीवन चरित्र १२ भवों में अङ्कित किया गया है । महाकाव्य का प्रारम्भ मंगलस्तुति से हुआ है। नगर-वन-पर्वत, षड्-ऋतु, प्रभात, सन्ध्या , सूर्योदय, चन्द्रोदय, नदी-समुद्र, युद्ध, एवं मन्त्रणा प्रादि वर्णनों से पनानन्द महाकाव्य में महाकाव्य के लक्षण चरितार्थ होते हैं। पद्मानन्द महाकाव्य में अपने युग की सांस्कृतिक चेतना के तत्त्व भी सुरक्षित हैं।
(१३) सोमेश्वरदेवकृत कीतिकौमुदी (१३वीं शती ई०)
ऐतिहासिक महाकाव्य कीर्तिकौमुदी के लेखक महाकवि सोमेश्वर हैं । सर्गान्त में निर्दिष्ट पुष्पिका के अनुसार यह द्योतित होता है कि . सोमेश्वर गूर्जर राजारों के राज-पुरोहित भी थे। १२५५ ई० के माउण्ट आबु स्थित भग्नाक्षर शिलालेख से भी इस तथ्य की पुष्टि होती है । सोमेश्वर ने भी स्वयं को धवलक्कक के लवणप्रसाद का पुरोहित बताया है।४ काठवाटे महोदय के निष्कर्षानुसार सोमेश्वर अणहिलवाडपट्टण के राजा भीमदेव तथा ढोल्का के लवणप्रसाद के राज-पुरोहित थे । जैन अमात्य वस्तुपाल ने सोमेश्वर को राज्य संरक्षण दिया हुअा था। सोमेश्वर ने भी वस्तुपाल के पराक्रमों एवं व्यक्तित्व सम्बन्धी विशेषताओं से प्रभावित होकर प्रस्तुत महाकाव्य का प्रणयन किया ।
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१. नेमिचन्द्र शास्त्री, संस्कृत काव्य. पृ० ३५२, पाद० टि० ३ २. तु० 'इति श्रीगूर्जरेश्वरपुरोहितश्रीसोमेश्वरदेवविरचिते कीर्तिकौमुदीनाम्नि
महाकाव्ये-।' कोति०, सर्ग १, पृ०६ 'Kathavate's Introduction to the first edition of Kirtikaumudi.
-कीर्तिकौमुदी तथा सुकृतसंकीर्तन महाकाव्य, सिन्धी जैन ग्रन्थमाला, सम्पा० मुनि पुण्यविजय सूरि, परिशिष्ट, पृ० ५६ ४. वही, पृ० ४६, पाद टि० २ ५. वही, पृ० ४६ ६. वही, पृ० ४६ ७. तु०-विलोक्य वस्तुपालस्य, भक्ति चात्मनि निर्भराम् । श्री सोमेश्वरदेवेन तत्स्वरूपं निरूप्यते ।।
- कीर्ति०, १.४६ तथा १.४७