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जैन संस्कृत महाकाव्यों में भारतीय समाज
सज्जन प्रशंसा दुर्जन निन्दा तथा कथानक में कौतुकावह स्थलों का विन्यास करना वास्तव में कथा एवं प्राख्यायिका के प्रमुख तत्त्व थे जो बाद में संस्कृत जैन महाकाव्यों में भी समाविष्ट हो गए थे । धर्मशर्माभ्युदय महाकाव्य इस दृष्टि से एक आदर्श एवं उत्कृष्ट महाकाव्य कहा जा सकता है ।
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(७) वादिराजसूरिकृत पार्श्वनाथनाथचरित (१०२५ ई० ) -
महान् दार्शनिक वादिराज ने तेईसवें तीर्थङ्कर पार्श्वनाथ के चरित्र को आधार मानकर शक संवत् १४७ (१०२५ ई० ) में पार्श्वनाथ चरित की रचना की । ' प्रमेयकमलमार्तण्ड तथा न्यायकुमुदचन्द्र जैसे महान् दार्शनिक ग्रन्थों के रचयिता प्रभाचन्द्र के वे समकालिक थे । वादिराज के अन्य काव्य यशोधरचरित में दक्षिण भारत के सोलङ्की वंश के राजा जयसिंह प्रथम ( १०१६-१०४२ ई०) का श्रप्रत्यक्ष रूप से उल्लेख भी हुआ है । जयसिंह के राज्यकाल में ही वादिराज ने यशोधर चरित की रचना भी की थी ।
पार्श्वनाथ चरित १२ सर्गों का पौराणिक शैली में रचा हुआ महाकाव्य है । शास्त्रानुसार मङ्गलाचरण से प्रारम्भ हुए इस महाकाव्य में नगर, वन, पर्वत, नदी, समुद्र, प्रातःकाल, सायङ्काल, सूर्योदय, चन्द्रोदय आदि के वर्णनों के अतिरिक्त जन्म, विवाह, सैनिक प्रयाण तथा युद्ध के वर्णन भी प्राप्त होते हैं । महाकाव्य का नायक पार्श्वनाथ अपने अनेक जन्मों से विचरण करता हुआ सतत रूप से अपने व्यक्तित्व को उन्नत करने में प्रयत्नशील रहता है । कुल मिलाकर पार्श्वनाथ' का चरित्र धीरोदात्त नायक के तुल्य है ।
(८) वाग्भटकृत नेमिनिर्वाण (१०७५ - ११२५ ई० ) -
वाग्भट रचित नेमिनिर्वारण महाकाव्य के रचनाकाल के सम्बन्ध में वाग्भटालङ्कार के लेखक वाग्भट द्वितीय के माध्यम से विशेष सहायता मिलती है । वाग्भट प्रथम के नेमिनिर्वाण महाकाव्य के लगभग आधे दर्जन पद्यों को वाग्भट द्वितीय ने अपने वाग्भटालङ्कार में ज्यों का त्यों उद्धृत किया है। इस प्रकार नेमिनिर्वाण वाग्भटालङ्कार से पूर्व विरचित हो चुका था । वाग्भट द्वितीय चालुक्य राजा
१. तु० 'शाकाब्दे नगवाधिरन्ध्रगणने संवत्सरे क्रोधने मासे कार्त्तिकनाम्नि बुद्धिमहिते शुद्ध तृतीयादिने' - पार्श्वनाथचरित, प्रशस्ति-५
२.
नेमिचन्द्र शास्त्री, संस्कृत काव्य०, पृ० १७४
३. नेमिनिर्वाण, सम्पा० शिवदत्तशर्मा तथा काशीनाथ पाण्डुरङ्ग परब, मुद्रकपाण्डुरङ्ग जावजी, निर्णय सागर प्रेस, बम्बई, द्वितीय संस्करण, १९३६