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अहिंसा ]
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उदाहरणार्थ, किसी मनुष्य को प्लेग की बीमारी हो गई । प्लेग के कीटाणु किसी सन्धिस्थल पर गिल्टी के रूप में जमा हो गये । उन कीड़ों का हमारे ऊपर यह आक्रमण है--भले ही उनका यह आक्रमण इच्छापूर्वक न हो, परन्तु है वह आक्रमण । इस समय हम कितनी भी निर्देष औषध का उपयोग करें, परन्तु उन कीड़ों का मारना अनिवार्य है । इसलिये इसे संकल्पी हिंसा न कहकर अनिचार्य विरोधी हिंसा ही कहना चाहिये ।
प्रश्न -- जीवन को टिकाये रहने के लिये यदि खेती करना, रोटी बनाना आवश्यक मालूम हो तो इसमें भी आप हिंसा न मानेंगे । जब हिंसा नहीं है तब संयमी मुनि भी ये काम करें तो क्या दोष है ? यदि कुछ दोष नहीं है तो जैनशास्त्रों में मुनि के लिये इन कार्यों का निषेध क्यों किया है ?
उत्तर -- कृषि आदि कार्य भी यथासाध्य यत्नाचार से किय जाँय तो उनमें हिंसा नहीं है, और एक संयमी मुनि भी ये कार्य कर सकता हैं । जैनशास्त्रों में मुनि के लिये इन कार्यों की जो मनाई की गई है, वह हिंसा से बचने के लिये नहीं किन्तु परिग्रह से बचने के लिये है । वह भी उस समय की दृष्टि से है, न कि सार्वकालिक । यदि जैनधर्म ने कृषि या पाक के भी कार्य में हिंसा मानी होती तो मुनि को भोजन करने की मनाई की होती; क्योंकि मुनि के भोजन के लिये मुनि को नहीं तो दूसरे को रसोई बनाना पड़ती है, कृषि करना पड़ती है।
प्रश्न-मुनि तो उद्दिष्टत्यागी होता है, इसलिये गृहस्थ लोग जो कृषि आदि में हिंसा करते हैं, उसका पाप उसे नहीं लगता,