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दर्शधर्म ]
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तरह विचार किया गया है, वैसा ही विचार यहाँ क्षमा के विषय में भी कर लेना चाहिये | क्षमा भी अहिंसा धर्म का एक भाग है, किन्तु कोमल और सुन्दर भाग है । यद्यपि दंड को भी अहिंसा के भीतर स्थान है, फिर भी बहुत से अवसर ऐसे आते हैं जब वैर की परम्परा को दूर करने के लिये या स्थायी शांति के लिये क्षमा ही एक अमोघ उपाय रह जाता है । यदि मनुष्य सर्वत्र बदले की नीति से काम लेन लगे तो संसार में दुःखों की वृद्धि कई गुणी हो जाये और उसे कभी शान्ति न मिले । सिंह अगर मच्छरों का शिकार करने लगे तो इससे उसका पेट तो न भरेगा, किन्तु उसकी इतनी शक्ति बर्बाद होगी कि वह अधमरा हो जायगा | सफता और शान्ति के लिये अनेक उपद्रवों को सहन करके ही हम अपनी शान्ति की रक्षा कर सकते हैं, तथा दूसरों को भी सुमार्ग पर लगा सकते हैं। अनेक दुष्ट और क्रूर प्राणी जो कि किसी भी प्रकार के दंड से नहीं सुधर सके, या दंडित नहीं किये जा सके-वे क्षमा से सुधर गये । कोई कोई चीज़ पानी से गलती है, और कोई कोई चीज़ अग्नि से गलती है अपने स्थान पर दोनों की उपयोगिता है । इसी प्रकार कहीं दंडनीति काम करती है, कहीं क्षमा । एक के स्थान पर दूसरे से काम लेने से अनर्थ हो जाता है। जिस प्रकार दंड के स्थान पर क्षमा काम नहीं कर सकती, उसी प्रकार क्षमा के स्थान पर दंड काम नहीं कर सकता । दंड की उपयोगिता कभी कभी हैं, उससे दंडनीय के सुधार की आशा कम है, जब कि क्षमा की उपयोगिता सदा है और उससे क्षम्य के सुधार की आशा अधिक है । जहाँ