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[जैनधर्म-मीमांसा
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होंगे | उदाहरणार्थ:--
राष्ट्र के जो उद्योग विदेशी पूँजीपतियों की प्रतियोगिता के कारण पनप नहीं सकते या टिक नहीं सकते, वे इन स्त्रार्थत्यागियों के भरोसे खड़े किये जा सकेंगे क्योंकि इन लोगों को बदला बहुत घोड़ा देना पड़ेगा ।
अगर राष्ट्र का ग्राम्य जीवन बर्बाद हो रहा है तो ये लोगजो कि विवेकी सभ्य और त्यागी होंगे - ग्राम्य जीवन का आदर्श उपस्थित करेंगे, जहाँ स्वच्छता, सभ्यता, सहयोगशीलता के साथ नागरिकता का समन्वय किया जायगा । इस प्रकार के नमुने उपस्थित कर दूसरे ग्रामों को इसीप्रकार सुधारने की कोशिश करेंगे । एक बार जहाँ इस प्रकार ग्राम्य सुधार की हवा चली कि वह सर्वव्यापी हो जायगी ।
जिस देश में करोड़ों रुपये धार्मिक संस्थाओं को दान दिया जाता हो उस देश में अगर उसका दसवाँ भाग इस ढंग से खर्च किया जाय तो देश की सारी आवश्यकताएँ देश में ही पूरी की जा सकती हैं । इस प्रकार अन्तर्राष्ट्रीय आर्थिक आक्रमणों का पाप दूर किया जा सकता है । अगर किसी उद्योग में एक लाख रुपया प्रतिवर्ष घाय सहा जाय और उस में काम करने वाले साधु के समान अपरिग्रही हों तो यह सम्भव ही नहीं है कि थोड़े से वर्षो में वह अपने पैरों पर खड़ा न हो सके । प्रारम्भ से ही जब पूँजीवादी मनोवृत्ति काम करने लगती है तब असफलता होती है, परन्तु यहाँ तो पूँजी खो देने तक की तयारी है और निस्वार्थ काम करना है तब क्यों न सफलता होगी ?