Book Title: Jain Dharm Mimansa 03
Author(s): Darbarilal Satyabhakta
Publisher: Satyashram Vardha

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Page 330
________________ ३२२ 1 [जैनधर्म-मीमांसा श्रावकों को एकरूप बनाना असम्भव था, इसलिये श्रावकों के लिये अनेक तरह के मूल-गुण मिलते हैं । श्वेताम्बर सम्प्रदाय में गृहस्थों के मूल-गुणों का कोई स्पष्ट उल्लेख नहीं मिलता, इससे भी मालूम होता है कि इन मूल-गुणों का निर्माण दिगम्बर-श्वेताम्बर भेद हो जाने के बाद हुआ था । इसलिये देश-काल , के अनुसार इनका वर्णन भी जुदा जुदा मिलता है । यहाँ सबका जुदा जुदा वर्णन क्रमशः दिया आता है। १-१-५ पाँच अणुव्रत, ६ मयत्याग, ७ मांसत्याग ८ मधुत्याग । -समन्तभद्र * २-१-५ पाँच अणुवत, ६ मद्यत्याग, ७ मांसत्याग, यतत्याग । -जिनसेन ३-- १-८ मद्य, मांस, मधु, ऊम्बर, कठूम्बर, बड़फल पीपरफल, पाकरफल-इन आठ का त्याग । सोमदेव । ४- १ मद्यत्याग, २ मांसत्याग, ३ मधुत्याग, ४ रात्रि भोजन त्याग, ५ ऊंबर आदि पाँच फलों का त्याग, ६ अरहंत, सिद्ध, आचार्य, उपाध्याय, साधु को नमस्कार, ७ जीवदया, ८ पानी - मद्यमांसमधु त्यागः सहायुवतपंच मम : अष्टौ मूलगुणानाहुरिणां श्रमणोत्तमाः ! * हिंसासत्यस्तेयादब्रह्मपरिग्रहाच्च बादरभेदात् ! वृतान्मांसामयारितिगृहिणोऽट सन्यमी मूलगुणाः।। मयमांसमप्रत्यागैः सहोदम्बरपंचकैः । अष्टावते गृहस्थानामुक्ता मूलगुणाः श्रुते ।

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