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गृहस्थों के मूलगुण ]
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गई है, उसी तरह अविवाहित विशेषतः विधवा स्त्रियों के लिये भी है ।
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परन्तु यह छूट उसी जगह के लिये है जहाँ कि चेष्टा करने पर भी विवाहित न बना जा सकता हो । अविवाहित का पहिला कर्तव्य यह है कि वह ब्रह्मचर्य का पालन करे । अगर ब्रह्मचर्य का पालन न कर सकता हो, तो विवाह करे । परन्तु जब हरएक प्रकार की कोशिश करने पर भी विवाह न हो, तो वह ऐसे व्यक्ति को अपना साथी बना सकता है जो किसी दूसरे व्यक्ति के साथ इस बन्धन में नहीं बँधा है ।
अहिंसादि चार अणुव्रतों को छोड़कर जो सिर्फ शील या ब्रह्मचर्यव्रत को मूलगुणों में रक्खा गया है उसका कारण यह है कि यह गृहस्थ जीवन का मूलाधार है। स्त्री और पुरुष अगर 'आपस में विश्वासघात करें तो गार्हस्थ्य जीवन नरक ही समझना चाहिये । अन्य अणुव्रतों के पालन न करने पर भी गार्हस्थ्य-जीवन की उतनी दुर्दशा नहीं होती जितनी कि इस शील के न पाटने से होती है, इसलिये गृहस्थों के मूलगुणों में इसका समावेश करना अत्यावश्यक है ।
अविवाहितों को जो छूट दी गई है, उसका कारण यह है कि उसके दुरुपयोग से आर्थिक या प्रबन्ध सम्बन्धी अन्य बुराइयाँ भले ही होवें, परन्तु गार्हस्थ्य-जीवन के मूल पर कुठाराघात नहीं होता ।
(६) गृहस्थ को अपनी आमदनी में से समाज हित के लिये कुछ न कुछ अवश्य देना चाहिये । अगर वह अत्यन्त गरीब हो,