Book Title: Jain Dharm Mimansa 03
Author(s): Darbarilal Satyabhakta
Publisher: Satyashram Vardha

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Page 357
________________ प्रतिमा ] [३१९ दिवामैथुनविरति रक्खा है । और इसका अर्थ किया है दिन में* मैथुन नहीं करना । इस मतभेद के मिलाने से प्रतिमाओं के चार पाठ हो जाते हैं। पहिले पाठ का- जो श्वेताम्बर सम्प्रदाय में प्रचलित है-अन्य पाठों से एक विशेष मतभेद और है और वह यह कि स्वताम्बर पाठ के अनुसार प्रतिमाएँ परिमित समय के लिये हैं, जब कि दिगम्बर मतानुसार प्रतिमाएँ जीवन भर के लिये ली जा सकती हैं। श्वेताम्बर मतानुसार पहिली प्रतिमा एक महीने के लिये है, दूसरी दो महीने के लिये, तीसरी तीन महीने के लिये, इस प्रकार ग्यारहवीं ग्यारह महीने के लिये । इस तरह सब प्रतिमाओं के अभ्यास में साई पाँच वर्ष लग जाते हैं। साथ ही यह नियम भी है कि ऊँची प्रतिमा धारण करने पर नीची प्रतिमा का धारण किये रहना अनिवार्य है, इस प्रकार ग्यारहवीं प्रतिमा के समय बाकी दस प्रतिमाओं का धारण करना अनिवार्य है । इस प्रकार पहिली प्रतिमा सब प्रतिओं के साथ रहने से साढ़े पाँच वर्ष तक रहेगी, दूसरी पाँच वर्ष पाँच माह, तीसरी पाँच वर्ष तीन माह, चौथी पाँच वर्ष इत्यादि । ऊँची प्रतिमाओं के धारण करने पर नीची प्रतिमाओं का धारण करना दिगम्बर सम्प्रदाय में भी अनिवार्य है । महात्मा महावीर ने आश्रम-व्यवस्था का विरोध करके भी उसके तत्व को स्वीकार किया था । कोई मनुष्य जिम्मेदारिों को श्री वैराग्यनिमित्तैकचित्तः प्रावृत्तनिधितः । • यस्त्रिधादि मजेन्ननी रात्रिमतवतस्तु सः । -सागारधर्मामृत ७-१२॥ -

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