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नित्य-कृत्य ]
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जाय तो किसी तरह क्षन्तव्य है, परन्तु उन पर भी राजोदित श्रृङ्गार विशेष महत्त्वपूर्ण नहीं मालूम होता । म० रामचन्द्र की महत्ता उनके वनवासी जीवन में है, और म० कृष्ण की महत्ता महाभारत के सारथी - जीवन में है; इसलिये उस समय के अनुरूप ही उनका शृङ्गार होना चाहिये। जैनमूर्तियों में म० महावीर की मूर्ति तो नग्न ही बनाना चाहिये । म० पार्श्वनाथ की मूर्ति, म० बुद्ध की तरह सब बनाना चाहिये; तथा यह नियम रक्खा जाय कि श्रमण महात्माओं की मूर्तियों पर अलङ्कार नाममात्र को भी न हो । २ - पूजा तो ब्राह्मण या उपाध्याय ही कर सकता है, या पुरुष ही कर सकता है - इस प्रकार के प्रतिबन्ध उठा देना चाहिये । यह घोषित कर देना चाहिये कि पुरुष हो या स्त्री, ब्राह्मण हो या शूद्र, अमीर हो या गरीब, सबको देवपूजा का समान अधिकार है । बहुत से स्थानों पर खियों को पूजा नहीं करने दी जाती अथवा मूर्ति को नहीं छूने दिया जाता । यह अन्याय है और यह बात जनशास्त्रों के भी प्रतिकूल है | बेताम्बर सम्प्रदाय में तो खियों को तीर्थंकर तक माना है, सैकड़ों स्त्रियों के मुक्त होने का उल्लेख है, इसलिये देवपूजा का निषेध किया जाय - यह तो हो ही नहीं सकता | दिगम्बर सम्प्रदाय में यद्यपि दिगम्बर के कट्टर आग्रह से तथा समय के प्रवाह से स्त्रीमुक्ति का निषेध किया गया; तथापि खियों के द्वारा देवपूजा के बहुत से उल्लेख मिलते हैंपद्मपुराण में रावण की पत्नियाँ, अंजनासती, चन्द्रनखा, विशल्या आदि; आदिपुराण में सुलोचना आदि; हरिवंश पुराण में गन्धर्वसेना,