Book Title: Jain Dharm Mimansa 03
Author(s): Darbarilal Satyabhakta
Publisher: Satyashram Vardha

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Page 353
________________ अतिचार ] [ ३४५ भोगोपभोग परिसंख्यान-इसक अतिचार दो तरह के मिलते हैं। पुरानी मान्यता यह है -१ सचित्ताहार, २ सचित्त से सम्बद्ध वस्तु का आहार, ३ सचित्त से मिश्रित वस्तु का आहार, ४ मादक आदि वस्तुओं का आहार, ५ अधपकी वस्तु का आहार, ये पाँचा अतिचार सिर्फ भोजन के विषय में हैं जब कि भोगोपभोग परिसंख्यान का क्षेत्र विशाल है, इसलिये अतिचारों का यह पाठ बहुत अपूर्ण है । इसलिये आचार्य समन्तभद्र ने जो संशोधन किया है या जो पाठ दिया है वह अधिक उपयुक्त है । १ विषयों में आदर रखना, २ बार बार विचार करना, ३ अत्यधिक लोलुपता रखना अर्थात् प्रतिकार हो जाने पर भी इच्छा रखना, ४ भविष्य के भोगों में तन्मय होना, ५ अत्यधिक तल्लीन होना । और भा अतिचार बनाय जा मकते हैं। अनर्थदंडविरति-१ असभ्य परिहास करना, २ असभ्य चेष्टा करन!, ३ व्यर्थ बकवाद करना, ४ बिना विचारे प्रवृत्ति करना, ५ अनावश्यक संग्रह करना। प्रोपध-१-२.३ बिना देखे शोधे वस्तुओं का उठाना रहना और बिछाना, १.५ धार्मिक क्रियाओं में अनादर रखना और भूल जाना। • सचित्तसबन्ध समिाभिषव दुःपक्काहाराः । -तत्वार्थ ७-३५ । • विषयविषताऽनुपेक्षाऽनस्मृतिरतिलील्यमतितृषानुभवौ । भोगांपभोगपरिमा व्यतिकमा पंच कश्यन्ते ॥ -रल क० श्रा० ३-४

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