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गृहस्थधर्म ]
[ ३१९ चाहिये । इसे गणना की मर्यादा बना लेना चाहिए कि आज पाँच या दस वस्तुओं से अधिक न लूँगा, जिससे कि अपने को या दूसरों को बहुत परेशानी न उठाना पड़े।
हाँ, दूसरे रूप में भी इस व्रत का पालन किया जा सकता है। जो वस्तुएँ हिंसा-जन्य हैं तथा आध्यात्मिक और आधिभौतिक दृष्टि से हानिकारक हैं, उनका त्याग करना चाहिए । आचार्य अक. लङ्क ने इसका बहुत ही सुन्दर कम पाँच भागों में बतलाया है। वे भोग संख्यान के वे पाँच भेद बताते हैं-स-वध, प्रमाद, बहुवध, अनिष्ट, अनुपसेव्य ।
चलते-फिरते प्राणियों के नाश से जो चीज़ तैयार होती है उसका त्याग पहिले करना चाहिए । इसमें मांस का नाम ही ठीक तौर से लिया जाता है । उसका त्याग अवश्य करे। हृदय को विक्षिप्त करनेवाली शराब आदि का त्याग दूसरा है । तीसरी श्रेणी जैनाचार्यों के प्राणिशास्त्र के ज्ञान की अपेक्षा से है । अमुक वनस्पतियों में अनन्त स्थावर जीव रहते हैं, इसलिए उनका त्याग करना चाहिए । इस विषय में संशोधन की जो आवश्यकता है उसका ज़िकर मैं पहिले कर चुका हूँ। वहीं यह बात कही है कि बनस्पति का भी इस ढंग से उपयोग म करना चाहिए जिससे उस का विघात तो अधिक हो और लाभ कम हो ।
जो वस्तु अपने शरीर के लिये हानिकर है-वह अनिष्ट है। साधारणतः विष आदि को अनिष्ट कह सकते हैं, परन्तु जुदे-जुदे प्राणियों के लिये जुदा-जुदा ही 'अनिष्ट' होगा। इसलिये किसी वस्तु का नाम नहीं लिया जा सकता । इससे यह बात समझ में