Book Title: Jain Dharm Mimansa 03
Author(s): Darbarilal Satyabhakta
Publisher: Satyashram Vardha

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Page 326
________________ ३१८] [जैनधर्म-मीमांसा भी विधान है, क्योंकि शक्ति के अनुसार तप करना ही कल्याण , कारी है। साधारणतः नियम ऐसा रखना चाहिये कि सप्ताह में एक दिन एकाशन किया जाय, और एकाशन में भी प्रतिदिन के समान सादा भोजन किया जाय-यही प्रोषधोपवास है। उपभोग-परिभोग-परिमाण - यहाँ पर 'उपभोग' शब्द का अर्थ है, इन्द्रियों के वे विषय जो एक ही बार भागे जा सकते है, जैसे-रोटी, पानी, गन्ध, द्रव्य आदि । 'परिभोग' का अर्थ है-इन्द्रियों के वे विषय जो एक बार भोग करके फिर भी भोगे जा सकते हैं, जैसे-वन आदि * । परन्तु अन्य जगह उपभोग के अर्थ में भोग शब्द का और परिभोग के अर्थ में उपभोग शब्द का व्यवहार हुआ है। आश्चर्य तो यह है कि एक ही पुस्तक में इस प्रकार शब्दों की गडबड़ी पाई जाती है। इस विषय में पहिले ही कह चुका हूँ कि इस प्रकार के परिमाण की आवश्यकता नहीं है। बल्कि अमुक वस्तुओं का त्याग कर देने से शेष वस्तुओं की माँग तीव्र हो जाती है-इससे अधिकतर अपने को और दूसरों को परेशानी उठानी पड़ती है । इसलिये आवश्यकता होने पर इस नियम को किसी दूसरे ही रूप में लेना - - • उपेत्य भुज्यते इति उपभोगः । अशनपानगन्धमाल्यादिः। ७.२१.८ परित्यज्य भुज्यते इति परिमोगः । आच्छादनप्रावरणार कारशयनानगृहयान वाहनादिः ।७-२१-९ । । ० राज वा. गंधमाल्याशिरःस्नानवसान्नपानादिषु मोगव्यवहारः शयनासनांगना हस्त्यावरण्यादिपमोगव्यपंदशः । ८-१३-३ त० राजवार्तिक ।

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