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दशधर्म ]
[ २८९ पुरुषार्थ है, प्रयत्न है-इसलिये दैव का विचार किये बिना हमें प्रयत्नशील होना चाहिए और अधिक से अधिक भलाई करना चाहिए।
शङ्का--असंयमी प्राणियों पर करुणा करने से तथा उन की रक्षा करने से असंयम की वृद्धि ही होगी । भविष्य में वे जो पाप करेंगे उसके निमित्त हम भी होंगे।
समाधान- प्राणी के जीवन में असंयम ही नहीं होता किन्तु संयम भी होता है, उसमें प्रेम भी होता है, इससे वह किसी का अवलम्बन भी बनता है, इसलिये हमें असंयमी का नहीं किन्तु असंयम का विचार करना चाहिए। असंयम के कार्य में सहायता कभी न करे, परन्तु असंयमी को सहायता करना चाहिए। सम्भव है-इमासे यह संयमी बने, दूसरों के लिए वह भलाई का साधन बने । गाय भैस आदि पशु भी असंयमी होते हैं, परन्तु उनकी रक्षा से समाज की रक्षा है । अहिंसा के प्रकरण में भी इस विषय में विवेचन किया है । उस पर भी विचार कर लेना चाहिये।
समदान- सामाजिकता तथा प्रेम बढ़ाने के लिये प्रीतिभोज करना आदि समदान है । यथाशक्ति ये काम भी उपयोगी हैं। इससे साम्पत्तिक वितरण में समता आती है-~-पारस्परिक सहयोग का भाव बढ़ता है । प्रवास वगैरह में हम दूसरों को, दूसरे अपने को सहायक होते हैं । हाँ, विवेक से काम लेने की जरूरत तो यहाँ भी है । मृत्युभोज सरीखी कर क्रियाओं का समर्थन इससे नहीं किया जा सकता।