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गृहस्थधर्म
[ ३०३ इसके अतिरिक्त और भी बहुत से मत है जिनमें या तो बतों की थोड़ी बहुत परिभाषा बदल दी गई है, अथवा गुणवती में एक आचार्य का अनुकरण किया गया है और शिक्षाब्रतो में किसी दूसरे आचार्थ का अनुकरण किया गया है।।
इन मतभेदों का मुख्य कारण देशकाल का भेद है । गुणवत और शिक्षावत की परिभाषा भी जैसी चाहिये वैसी स्पष्ट नहीं है, इसलिये भी अनेक व्रत वर्गीकरण में घर के उधर हो गये हैं। इस विषय में अनेक आचार्य तो चुप्पी साधकर रह गये हैं और अनेकों ने अनिश्चित रूप में भेद दिखलाया है । 'प्रायः' शब्द का प्रयोग करके उनने लक्षण-भेद को अस्पष्ट कर दिया है। बास्तव में वहाँ अस्पष्टता का कारण भी है । जैसे-गुणत्रत के भेद अगर इससे किये जायें कि उनमें जीवन भर के लिये व्रत लिये जाते हैं और इसलिये देशविरति को गुणव्रत से बाहर कर दिया जाय तो भोगापभोगगरिमाणवत भी अमुक अंश में अलग कर देना पड़ेगा, अथवा उसके एक अंश को गुणत्रत और दुसरे अंश को शिक्षाबत मानना पड़ेगा, क्योंकि भोगोपभोग परिमाणवत में यम और नियम दोनों का विधान है। यम जीवनपर्यन्त रहता है और नियम * में समय की मर्यादा रहती है।
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$ नियमोयमय विहितों द्वेषा भोगोपभोगसंहारे। नियमः परिमितकालो यावजी यमी भिते ।
३.४१.र.क. पा. • अद्य दिवा रजनी वा पक्षो मासस्तथ रयनं वा । इतिकालपििकत्त्या मत्यारयानं मवेनियमः