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गृहस्थधर्म ]
[ ३१३ बाहर हिप्तादान* अनुचित है । परन्तु भलाई के लिये पारस्परिकव्यवहार का क्षेत्र समग्र विश्व है। जिन लोगों ने रसोई बनाने के लिये भी अग्नि देने की मनाई की है उनने एक प्रकार से निवृत्येकान्त का पोषण किया है जो कि अनुचित है।
प्रश्न- जो लोग युद्ध की सामग्री बनाने या बेचने का धन्धा करते हैं और अपना व्यापार चमकाने के लिये दो राज्यों को लड़ने को उत्तेजित करते हैं, राष्ट्रीयता का ऐसा मोहक-संगीत सुनाते हैं कि जिससे मोहित होकर अनेक राज्य हरिण की तरह युद्ध के जाल में फंस जाते हैं, उनका यह कार्य अनर्थदंड कहलायगा कि नहीं ? यदि नहीं तो जगत् में आप हिंसादान किसी को भी नहीं कह सकेंगे । यदि हाँ, तो इसमें अनर्थदंड की परिभाषा कहाँ जाती है ? क्योंकि अनर्थदंड तो उस पाप को कहते हैं जिस से अपना कोई प्रयोजन सिद्ध न होता हो । परन्तु राज्यों को लड़ाने से तो शस्त्रास्त्र के व्यापारियों का व्यापार चमकता है।
उत्तर- वास्तव में वह भयंकर. पाप अनर्थ-दंड की परिभाषा में नहीं आता, परन्तु वह है हिंसादान अवश्य । वह अनर्थदंड-रूप नहीं है, किन्तु उससे भी बढ़कर घोर-हिंसारूप है । ऐसे लोग तो महा-हिंसक हैं।
अपध्यान--पाप की सफलता की तथा पुण्य के पराजय
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* यंत्र लागल शमामि मूशलोदूखलादिक । दाक्षिण्याविषये हिंसा नार्पयेत् करुणापरः।
-योगशाख ३.७७॥ हिंसादानं विषास्त्रादि हिंसाकस्पर्शनं त्यजेत् । पाकापर्ध च नाग्न्यादि दाक्षिण्याविषयेऽर्पयेत।
- सागारधर्मामृत ५.८॥