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गृहस्थधर्म ]
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नाम नहीं आता है । उवासगदसा सूत्र में चार ही अनर्थदंडों का
उल्लेख है । इससे मालूम होता है कि पहिले दुःश्रुति नाम का अनर्थदंड नहीं माना जाता था; पीछे से उसकी ज़रूरत मालूम होने लगी । अथवा कट्टर साम्प्रदायिकता का भी यह फल हो सकता है | श्वेताम्बर सम्प्रदाय में यह संख्या तो चार ही रही, किन्तु दुःश्रुति का काम प्रमादचर्या से ही ले लिया गया । इसीलिये हेमचन्द्रचार्य ने प्रमादचर्या के भीतर ही दुःश्रुति को शामिल 3 कर लिया है ।
प्रकार है कि थोड़े
ध्यान लगाकर स्थिर
सामायिक - थोड़े समय के लिये सब पापों का त्याग कर देना सामायिक है । परन्तु इसका रिवाज़ इस समय के लिये अमुक आसन लगाकर मनुष्य हो जाता है; कुछ मन्त्र का जाप भी किया जाता है । इस प्रकार दिन में तीन बार - सुबह, दुपहर और संध्या को -- सामायिक का विधान है ।
बहुत से स्थानों पर यह विधान रिवाज़ में परिणत हो गया है । तीन बार तो नहीं किन्तु दो बार या एक बार लोग समायिक करते हैं । जिसको फुरसत हो वह तीन से भी अधिक बार सामायिक
* तयाणन्तरं च पं चउच्चिह अपट्टादण्डं पचक्खाइ । तं जहा अवज्ञाणा परियं प्रमायायरियं हिंसप्पयाण, पावकममत्रए । १-४३ ।
# कुतुहलाद्गीत नृत्य नाटकादि निरक्षिणं । कामशास्त्र प्रसक्तिव द्यूतमद्यादिसेवनं । ३-७८ | torisदोलनादि विनोदो जंतु गोधनं रिपोः स्तादिना वैरं भली देशराद कथा ।
३-७९ | योगशास्त्र |