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दशधर्म ]
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इस प्रकार दान करने की दिशा में परिवर्तन करना चाहिये ऐसी संस्थाओं के नीचे उद्योग चलाने के लिये धन का दान करना किसी भी अन्य धार्मिक संस्था में दान करने की अपेक्षा अधिक पुण्यका कार्य है क्योंकि इससे स्वकल्याण और परकल्याण दोनों ही होते हैं। इस जरिये से बेकारी भी इटायी जा सकती है और आदर्श समाज भी बनायी जा सकती है। इन दोनों बातों के नाना सुफल होंगे वे अलग |
ये आश्रम लोगों को शांति प्रदान करने तथा जीवन सुधार की शिक्षा लेने के लिये भी उपयोगी होंगे। पुराने ढंग के लोगों में तीर्थाटन का बहुत रिवाज है। नये ढंग के के लोग भी हवाखोरी के बहाने देशाटन करते ही हैं । कुछ लोग नगरों से या अपने स्थान से ऊब कर कुछ समय के लिये अन्यत्र चले जाते हैं । ऐसे लोगों के लिये ये आश्रम बड़े काम की चीज होंगे । यहाँ पर आकर लोग सकुटुम्ब होकर रहें। जीवन सुधार का, संयम का, शांति का अभ्यास करें । साथ ही वायु परिवर्तन भी । इस प्रकार ये संस्थाएँ समाज राष्ट्र और विश्व की बहुत अच्छी चीज बन सकेंगी।
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पात्र दान की यह नयी व्यवस्था विवेकपूर्ण तथा बहुत फल देनेवाली है । रोटी खिला देने से या थोड़ा-सा अन्न दे देने से या थोड़ी सी सम्पत्ति आँख बन्द कर जहाँ चाहे फेंकदेने से पात्र दान नहीं हो जाता | उस के लिये विवेक से काम लेकर ऐसा प्रयत्न करना चाहिये, जिस से समाज का सर्वाङ्गीण विकास हो उस के कष्ट कम हो तथा सुख में वृद्धि हो ।
पात्र दान में अन्य दानों की अपेक्षा विशेषता यह है कि