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[जैनधर्म-मीमांसा भयंकर अपराध होता था तब उसे फिर नये सिरे से दीक्षा दी जाती थी ! यह उपस्थापना प्रायश्चित्त था। .
पुरानी मुनिसंस्था के लिये ये सब नियम बहुत उपयोगी ये, और आन भी इनकी उपयोगिता है । हाँ, थोड़ा बहुत परिवर्तन करने की आवश्यकता होगी तो इसमें कोई हानि नहीं है । मल बात यही है कि निदोषता बढ़ाया जाय, वैर भाव हटाया जाय, अहंकार दूर किया जाय, इस प्रकार आत्म-शुद्धि हो । प्रायविच एक महान तप है । व्यवहार को सुव्यवस्थित और सुखमय बनाने के लिये भी इस तरह तपकी बड़ी उपयोगिता है । सकड़ों उपवासों का करना सरल है परन्तु सचा प्रायश्चित्त करना कठिन है । इसका महत्व भी सैकड़ों उपवासों से सैकड़ों गुणा है। .
विनय-विनय अर्थात नम्रता भी एक सचा तप है। आकार के सिर पर यह सीधा दंड-प्रहार है । सत्य के द्वार पर ले जाने वाला एक सुंदर मार्ग है । इसके चगर मेद है-ज्ञान विनय, दर्शन-विनय, चारित्र-विनय और उपचार-विनय ।
___ज्ञान के विषय में विवेक पूर्वक पूज्यभाव रखना ज्ञान-विनय है। ज्ञान के क्षेत्र की बहुतसी बाते ऐसी होती है जो हमारे लिये। उपयोगी नहीं होती, इसलिये हम उनका तिरस्कार करने लगते है परन्तु ऐसा न करना चाहिये । अगर कोई बात मिथ्या नहीं है अर्थात कल्यणकारी है तो हमारे लिये उपयोगी हो या न हो, हमें उसके विषय में मान रखना चाहिये । इसी प्रकार सत्यकी प्राप्ति के लिये दुनिया में जितने शाल बने " बन रहे है, अथवा उनमें विकास हो रहा है उसके विषय में भी आदर भाव रखना चाहिये।