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दधर्म]
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बार्तध्यान न समझना चाहिये
शंका-भविष्य सुखकी आकांक्षा करने को आपने मिदान बताया परन्तु वर्तमान मुखकी इच्छा करने वाला अर्थात् वर्तमान में विषयों में लीन रहनेवाला क्या मार्तध्यानी नहीं है! क्या वह शुभध्यानी है।
'समाधान-वह शुभध्यानी नहीं किन्तु रौदध्यानी है। भविष्य की भोगाकांक्षा में अप्राप्ति का कष्ट रहता है इसलिये इसे आतध्यान में शामिल रक्खा है, परंतु वर्तमान भोगों में तो एक करता पूर्ण उल्लास रहता है इसलिये इसे विषयसंरक्षणानन्द या परिग्रहानन्द नामका रोद्रायन कहा है।
इस प्रकरण. में अपरिग्रह की परिभाषा ध्यान में रखना चाहिये । शरीर की स्थिति के लिये तथा दूसरों को कष्ट न देते हुए अगर वस्तुओं का उपयोग किया जाय तो उस में नशुभ ध्यान नहीं होता।
रौद्रध्यान-पाप में आनन्दरूप-उल्लासरूप-पत्ति रोदध्यान है। इसके बार भेद है, हिंसानन्द, अन्नानन्द, चौर्यानन्द, परि. महानन्द । इन के लक्षण इन के नामसे ही मालूम हो जाते हैं। .
शंका-जिस प्रकार पार पाँच है, उसी प्रकार सैदध्यान पाँच प्रकार का होना चाहिये था। कुशीलानन्द क्यों छेड़ दिया !
ममाधान-वह परिग्रह या विषय सेवन में शामिल है। पहिले चार व्रत और चार पाप माने जाते थे इसलिये ध्यान की संख्या भी चार ही रही । पीछे जब ब्रह्मचर्यको अलग ब्रत बनाने की ज़रूरत पड़ी तब पाँच ब्रत हो गये । और पांच बतों को सम