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दशधर्म ]
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वृत्तिपरिसंख्यान-भिक्षा लेने के विशेष नियम को वृत्तिपरिसंख्यान* कहते हैं । ये नियम अनेक तरह के होते हैं, जैसे कोई मुनि यह नियम लेता है कि मैं दो घर से ही भिक्षा लाऊँगा आदि । अनेक घरों से भिक्षा लेते समय भोजन की तृष्णा रोकने के लिये यह तप है । अथवा कोई अटपटी प्रतिज्ञा लेने को भी वृत्तिपरिसंख्यान कहते हैं । जैसे- भोजन देनेवाला और कोई क्षत्रिय होगा, या शूद्र होगा, या स्त्री होगी, घर के पास अमुक वृक्ष होगा तो भाजन लूंगा, आदि । ये सब प्रतिज्ञाएँ इसलिये की जाती थी कि जिससे अनशन अवमौदर्य (ऊनोदर) आदि तमों के लिये मन उत्तेजित हो, आशा में निराशा को सहने का अभ्यास बढ़े । कभी कभी दूसरों को कष्ट से बचाने के लिये भी इसका उपयोग हो जाता है । इस प्रकार के तप से महात्मा महावीर के द्वारा महासती चन्दनबाला का उद्धार हुआ था। इसी प्रकार दूसरों का भी उद्धार किया जा सकता है । आजकल तो भिक्षा-वृत्ति के अनिवार्य नियम को ही उठा देना है, इसलिये इस तप की कोई जरूरत नहीं है । अगर भिक्षा लेने का अवसर मिले भी तो ऐसी ही प्रतिज्ञा लेना चाहिये जिससे किसी का उद्धार हो । सिर्फ तपस्वी कहलाने के लिये निरुपयोगी प्रतिज्ञाएँ लेकर दूसरों को परेशान करना तथा
* वृत्तिपरिसंख्यानम् अनेकविधम् । तद्यथा-उस्थिक्षप्तान्तप्रान्त वर्यादीनां सतु कुरुमाषौदनादीनाम् चान्यतममभिगृह्यावशेषस्य प्रत्याख्यानम् । तत्वा र्थभाव्य ९-१९-३ . एकागारसप्तवेश्मैकरण्यार्थप्रामादिविषयः संकल्पो वृत्तिसंख्यानं ।
-तत्वार्थराजवार्तिक ९-१९-४ ।