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[ जैनधर्म-मीमांसा तो हाथियों का बिगड़ना आदि था, परन्तु उसके पहिले जो सफलता हुई थी उसका कारण फूट ही था । इस्लामधर्मवालों के संघर्षमें भी हमें हर जगह फट या राजनैतिक मूर्खता ही दिखाई देती है और ऐसे ही कारण अंग्रेजी संघर्षके समय में भी रहे हैं । “ मैं अहिंसक हूं इसलिये युद्ध नहीं करूंगा" ऐसा विचारकर किसीने देशको विदेशियोंके ताबे कर दिया हो, ऐसी कोई घटना नहीं मिलती। इसके अतिरिक्त ऐतिहासिक युग में जैन नरेशोंके युद्ध और विजय का इतिहास मिलता है । सम्राट् खारवेलका नाम तो प्रसिद्ध ही है, परन्तु कुछ शताब्दी पहिले तक जैन राजा होते रहे हैं । आज जैनियों के हाथ में राज्यश्री नहीं है इसका कारण अहिंसा नहीं है, किन्तु प्रकृतिका नियम है । बड़े बड़े साम्राज्य डूबे, सभ्यताएँ डूबी, इस तरह परिवर्तन होते ही रहते हैं उसी नियमानुसार जैन युग भी चला गया।
ऐतिहासिक घटनाओं का निरीक्षण करने से भारतकी पराजयके कुछ कारण स्पष्ट दिखाई देने लगते हैं । जैसे
१ फूट--पृथ्वीराज, जयचन्द्र, आदि इसके उदाहरण हैं । . २ ईर्ष्या-मराठा साम्राज्यके अधःपतनके समय सिंधिया होलकर आदि में ।
३ विश्वासघात-सिक्ख सेनापति, मीरजाफर आदि ।
४ राजनैतिक-पृथ्वीराजकी अनुचित क्षमा, राणा प्रताप का भाइयों को विद्रोही बना लेना। वीरता होने पर भी नीति से काम न लेना।
५ चौकापन्थी मूढ़ता--हिन्दू सिपाहियोंकी रसोई में मुसलमान सिपाहियों के आने से रसोईका अपवित्र मान लेना इससे