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| जैन-धर्म-प्रमींसा
कह दिया कि मेरा चित्त तुम्हारी पत्नीपर आसक्त होगया है । उसने जाकर तुरन्तही अपनी स्त्रीसे कहाकि तुम मेरे मित्र की इच्छा पूरी करो, मैं तुम्हें एक हजार ग्राम दूँगा । यह सुनकर वह अपने पति मित्रको सन्तुष्ट करने के लिये गई उसका पति भी छुपकर उसके पीछे इस आशयने आया कि अगर यह मेरे मित्रकी इच्छा पूर्ण न कोगी तो इसे दंड दूँगा ।
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पछेिले उसके मित्र प्रभत्र को ही यह कार्य अनुचित मालूम हुआ परन्तु इससे किसी समय के वातावरणको जानके पर्याप्त साधन मिलते हैं । इसलिये एस्किमो जातिका यह रिवाज़ अनुचित होने पर भी आश्चर्यजनक और भारत के लिये अभूतपूर्व नहीं मालूम होता । माँगोल फारेन, डोडा और डकोटा जातिमें सती का ज़रा भी मूल्य नहीं है
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नाइकेर गुआ में वर्ष में एक त्यौहार के दिन सभी स्त्रियों को व्यभिचार करने के लिये दी जाती हैं । हमारे यहाँका होलीका
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[] युवा प्राणयमस्यास्य दुःखं खत्रीनिमित्तकम् । तामाशु प्राहिगो प्राज्ञः सुमित्र निवसः | ३६ | अविनियमन्ना स्थानकाका ततोनिग्रहमेत यः कर्नास्ति सुविति ॥ ३८ ॥ यया वा कामं संपाद विष्यति। ततेोप्राण[जयिष्यामि सुन्दरीं । ३९ । पद्मचरित पर्व १२ ।
ननिऊण तन्म चलणे नत्र परिकउम्पती दहुण तुझ हिल सामिय आय पत्तो | १८ | मणिण वयणमेयं भगइ सामेतो निसामु वणमालं वच्चतु श्रीमत्या भवसया पसन्नही । १९ । गाम सहस्से सुन्दरि देमिनुमं जर करेहिमिचहियं । जइतं नेच्छसिभढे घोरं ते निग्गहं काहूं २० भणिऊण वयणमेयं बणमाला पत्थिया समओ स पत्ता पभवागारं तेगय सा पुच्छिया सहसा २१ पटमचरियं उदेस १२
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