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अपरिग्रह]
[१५५ दुनियाँ से उठ नहीं गई है , इससे सिर्फ अहिंसा को नैतिक-वल तथा समाज का पीठ-बल मिला है। इसी प्रकार परिग्रह-पाप भी नष्ट न होगा; किन्तु अपरिग्रह व्रत को नैतिक बल तथा समाज का पीठ-बल मिल जायगा, यही क्या कम है !
अपरिग्रह के अपवाद-व्यवहार में तो लोगों ने अभी तक परिग्रह को पाप समझना नहीं सीखा है, परन्तु जब उनसे चर्चा करने बैठो तब वे 'बाल की खाल' निकलते हैं । उनकी दृष्टि में साधारण कपड़े पहिननेवाला या लँगोटी लनानेवाला, चलने के सुभीते के लिये एकाध लकड़ी रखनेवाला या दो चार पैसे रखने वाला भी परिग्रही है, अर्थात् उनकी दृष्टि में प्रत्येक वस्तु परिग्रह ही है । यद्यपि जुने जुदे सम्प्रदायों ने जुदे जुदे उपकरणों को अपवादरूप स्वीकार किया है। किन्तु उनके वे नियम विशेष विशेष साधु-संस्था से सम्बन्ध रखते हैं, परन्तु मुझे तो यहाँ यह विचार करना है कि यम की दृष्टि से इसके अपवाद क्या हैं ? अपरिग्रही कितनी और कौन कौन चीजें रख सकता है !
१-जीवन-निर्वाह के लिये जो चीजें अनिवार्य हैं उन्हें परिग्रह नहीं कहते । जैसे, कोई आदमी रोटी आदि खाद्य सामग्री को रखता है तो वह परिमही नहीं कहलाता । अपरिग्रह-व्रत का पालन करनेवाला इसीलिये भिक्षा आदि से अगर अन्न लावे तो उसे परिमही नहीं कहेंगे।
शंका-एक आदमी किसी के यहाँ भोजन कर आवे यह लो ठीक है, परन्तु अगर वह किसी पात्र में भिक्षा-वस्तु लेकर रक्खेगा तब तो परिग्रही कहलायगा।