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मुनिसंस्था के नियम ]
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पुरानी है ।
थे । आज तो
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इसलिये आज
आवश्यकता है ।
वर्तमान की जैन मुनि-संस्था ढाई हजार वर्ष बीच में कुछ संशोधन हुए थे; परन्तु वे नाममात्र के वह कई तरह से निरुपयोगी और विकृत हो गई है, उसमें साधारण सुधार नहीं, किन्तु क्रांति की दिगम्बर और श्वेताम्बर सम्प्रदायों में मुनियों के लिए जो कुछ नियम बनाये गये हैं, उनका प्रयोजन क्या है, एक समय में वे उपयोगी होने पर भी आज वे निरुपयोगी क्यों हैं और उनको क्यों हटाना चाहिये तथा उन्हें हटाकर दूसरे कौन से नियम लाना चाहिये, इसी बात का यहाँ विवेचन किया जाता है
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मुनि-संस्था के नियम
अगर मुनि-संस्था खड़ी की जाय या रक्खी जाय तो उसके नियम कैसे होना चाहिये, इसका उत्तर देश - काल की परिस्थिति के अनुसार ही दिया जा सकता है । मुनि-संस्था की आवश्यकता के विषय में दो बातें कही जा सकती हैं। एक वैयक्तिक आवश्यकता, दूसरी सामाजिक आवश्यकता । जिन नियमों के आधार से इन आवश्यकताओं की अधिक से अधिक पूर्ति हो उन नियमों के आधार पर ही मुनि-संस्था के नियम बनाना चाहिये ।
जो मनुष्य शारीरिक कष्टों की पर्वाह नहीं करते, किन्तु मानसिक-शान्ति चाहते हैं और इस प्रकार की मानसिक-शान्ति में ही जिनको बहुत आनन्द मिलता है, वे मुनि-संस्था में जुड़ जाते हैं या मुनि हो जाते हैं । यह वैयक्तिक आवश्यकता है ।