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मुनिसंस्था के नियम ]
[१८३ जो लोक-हितकर कार्यों में बाधा डालते है । साधु-संस्था भी एक ऐसी संस्था है जैसी अनेक लौकिक संस्थाएँ हैं, इसलिये उनके समान उसकी व्यवस्था के नियम भी बदलते रहना चाहिये।
जैन-शास्त्रों में साधुओं के जो मूल गुण हैं, उनमें कितने आवश्यक हैं और कितने अनावश्यक ! और उनमें कुछ नियम बनाने की आवश्यकता है कि नहीं ! आदि समस्याएँ विचारणीय हैं । ____ जैन-शामों में साधुओं के सत्ताईस या अट्ठाईस मूल-गुण कहे गये हैं। दिगम्बर-शास्त्रों में २८ हैं और श्वेताम्बर शास्त्रों में २७ । दिगम्बर जैन साधुओं के* २८ मूलगुण ये हैं---
५ महाव्रत, ५ समिति, ५ इन्द्रियविजय, ६ आवश्यक, १ केशलोंच, १ नग्रता, १ स्नान नहीं करना, १ ज़मीन पर सोना, १ दतौन नहीं करना, १ खड़े-खड़े आहार लेना, १ दिन में सिर्फ एक बार ही भोजन लेना।
श्वेताम्बर सम्प्रदाय में मूल-गुण २७ हैं और उनके दो पाठ मुझे मिले हैं । पहिला पाठ समवायांग : सूत्र का यह है -
* पंचय महव्वयाई समिदीआ पंच जिमवरहिट्ठा ।
पंचविंदियरोहा गप्पय आवासया लोचो ॥२॥ अञ्चलकमण्हाणं खिदिसयणमदंतघस्सणं चेव । ठिदिमायणेयमचं मूलगुणा अहवीसादु ॥ ॥
-मूलाचार, मूलगुणधिकार सत्तावीसं अणगार गुणा प० तं० पाण!इशायाओं वेस्नणं. मुसावाया) बेरमणं, आदिण्णादाणाओ वेरमणं मेहुणाओ वेरमणं, परिग्गाहाजो बेरमणं, सोइंदिय निम्गहे, चविखदिय निम्गहे, जिभिदिय निग्गहे फार्सिदिय निम्ग