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[ जैनधर्म-मीमांसा
" जैन लिंग को छोड़कर अन्य लिंग-दंड, कमण्डलु, त्रिदंड आदि-से जो लोग मुक्ति प्राप्त करते हैं उसका कारण समभाव ही । इसीसे रत्नत्रय का फल प्राप्त होता है जिससे सच्चा जैनव मिलता है
!
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वेज की उदारता के - दिगम्बर सम्प्रदाय में- प्रमाण तो मिलते ही हैं, परन्तु प्रवृत्तिरूप में भी यह उदारता आ चुकी है । भट्टारक लोग - जो कि शाही ठाटबाट से रहते थे और अब भी रहते हैंदिगम्बर ही माने जाते हैं, और उनमें कई तो अपने को कट्टर दिगम्बर समझते थे और हैं वेष की उदारता का यह प्रबल प्रमाण है, साथ ही इसमें कुछ अतिरेक भी है जो कि आवश्यकताव करना पड़ा था। क्या ही अच्छा होता यदि यह उदारता उसी समय आ गई होती जब कि दिगम्बर, श्वेताम्बर नाम के दो संघ पैदा हुये थे ।
व्यावहारिक उदारता के कुछ नमूने और भी पेश किये जा सकते हैं। जब नग्न मुनियों को देखकर लोग उपद्रव करने लगते थे, तब उनके आचार्य चटाई वगैरह लपेटने की आज्ञा दे देते थे, अथवा कभी कभी जब कोई प्रभावशाली व्यक्ति मुनि होना चाहता था, किन्तु पुरुष चिन्ह वगैरह में दोष होने से वह लज्जित होता था, अथवा ठंड वगैरह नहीं सह सकता था तब उसके लिये दिगम्बर मुनि होते हुए भी नग्नता की शर्त उठा ली जाती थी ।
* कलो किल नग्नं दुष्ट्वा उपद्रवं यानी कुर्वन्ति तेन मण्डपदुर्गे श्री वसन्तकीर्तिना स्वाभिना चर्यादिवेलायां तसादरादिकेन शरीरमाच्छाद्य चर्यादिकं