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जैनधर्म मीमांसा
बाधक न बन जाय, यही भावना शरीर की अन्मसक्ति है। कपड़े के विषय में भी यही भावना रखते हुए उससे स्वास्थ्य-रक्षा आदि करना चाहिए।
• अगर नग्नता को निष्परित्रहता का अनिवार्य चिन्ह बना लिया जाय तो साइबीरिया आदि देशों में साधु-संस्था का खड़ा करना असंभव हो जायगा । काश्मीर आदि में भी शीतऋतु में नग्न र कठिन है । वहाँ नग्न रहने से शीघ्र ही स्वास्थ्य खराब हो जायगा । तब वह आत्मोपकार और अगरसेवा करने के बदले आत्मापकार करेंगा तथा दूसरों से सेवा - करायगा, इसलिये नग्नता के लिये एकान्त आग्रह न रखना चाहिये। .. नग्न वेष की उचित कहा जा सकता है, जहाँपर नग्न रहने की प्रथा खूब फैल गई हो, स्त्री-पुरुष, नग्न रहने लगे हो, अथवा वल इतने दुर्लभ हो गये हों, कि लंगोटी. लगाने से भी समाज के ऊपर बोझ पड़ता हो, आदि । द्रव्य क्षेत्र काल-भाव के अनुसार इसका निर्णय कर लेना चाहिये, परन्तु नग्नता के बिना साधुता नहीं रह सकती यह एकान्त आग्रह कद्रापि न रखना चाहिये, इसलिये नग्नता को मूल-गुण नहीं माना असकृता ।। ......
अस्नान और अंदतमणः- मान नहीं करना और दतान नहीं करना, ये भी मूलगुण में शामिल समझ जाते हैं । दाई हजार वर्ष पहिले मुनियों के लिये सम्भवतः इस व्रत की जरूरत दुई होगी, परन्तु आज इसकी बिलकुल आवश्यकता नहीं है। यह
भी सम्भव है कि दिगम्बर, श्वेताम्बर द हो जाने के बाद ही • इन्हें मूलगुण में स्थान मिला हो। तार सम्प्रदाय में मलगुणों में