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सुनिसंस्था के नियम ]
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मूलगुणों में नहीं था, पीछे उसकी आवश्यकता मालूम हुई और TE भावनाओं के रूप में या स्पष्ट रूप में व्रत बना लिया गया ।
परन्तु, अगर मुनियों के लिये ही यह व्रत रहता और श्रावकों के लिये न रहता तत्र बड़ी अड़चन होती; क्योंकि मुनियों को तो श्रावकों से भोजन मिलता था -- और भोजन भी वह जो श्रावकों ने अपने लिये बनाया हो -तत्र मुनियों को रात्रि में भोजन करना पड़ता या शाम का भोजन बन्द रखना पड़ता । यद्यपि दिगम्बर सम्प्रदाय में शाम का भोजन नहीं होता है, परन्तु श्वेताम्बर सम्प्रदाय में यह प्रचलित है, और इसमें कोई बुराई नहीं मालूम होती । दिन के दो भोजन गिनने का रिवाज दिगम्बर श्वेतावरदानों में एक सरीखा है । बेला, तेला आदि के लिये जो शब्द प्रचलित हैं उनसे भी यह बात ध्वनित होती है । लगातार दो उपवास करने को छट्ट कहते हैं । छट्ट का सीधा अर्थ यही है कि जिसमें छट्ठा भोजन किया जाय, अर्थात् पाँच भोजन बन्द किये जॉय । एक आज के शाम का आर दा कल के और दो परसों के, इस प्रकार पाँच भोजन बन्द करने पर हट्ट होता है । इस अर्थ में प्रतिदिन के दो भोजन मान लिये गये हैं । छट्टु आदि शब्दों का यह अर्थ उनके इतिहास पर प्रकाश डालकर दिन के दो भोजन सिद्ध करता है। खैर, दिन में दो भोजन हो या एक, परन्तु श्रावकों में रात्रि भोजन का प्रचार रहने पर सुबह के भोजन की व्यवस्था भी बिगड़ जाती है । जो लोग रात्रि में भोजन करेंगे, वे दिन के पूर्वार्ध का भोजन जल्दी नहीं कर सकते, वे ग्यारह - बारह बजे तक भोजन करेंगे। उस समय साधु के सामायिक आदि का