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(जैनधर्म-मीमांसा
पहिचान सकें और साधारण जनता को भी उनको पहिचानने में सुभीता हो; उसी प्रकार साधु-संस्था में भी कोई नियत वेष (uniform dress) हो तो कोई आपत्ति नहीं है, परन्तु उसे साधुता की अनिवार्य शर्त मान लेना हास्यास्पद है ।
श्वेताम्बर सम्प्रदाय में भी एक वेष नियत है, परन्तु उस वेष को मूल गुण नहीं बनाया गया । और, शास्त्रों में तो वेष की उदारता के प्रमाण दोनों सम्प्रदायों में पाये जाते हैं । अन्तर इतना ही है कि श्वेताम्बर शास्त्रों में उस उदारता का विस्तृत वर्णन है और दिगम्बर शास्त्रों में संक्षिप्त, परन्तु इससे इतना तो मालूम होता है कि दोनों सम्प्रदायों में वेष सम्बन्धी उदारता है ।
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श्री उमास्वातिकृत तत्वार्थ भाष्य में स्पष्ट लिखा है:"लिंग दो तरह का है, द्रव्यलिंग और भावलिंग | भावलिंग की अपेक्षा से सभी मुनि भावलिंग में होते हैं अर्थात् मुनि तत्व के परिणाम सबमें पाये जाते हैं, परन्तु द्रव्यलिंग की अपेक्षा उनमें भेद है अर्थात् उनका वेप अनेक तरह का हो सकता है" ।
" द्रव्यलिंग तीन तरह का होता है । अपना लिंग अर्थात् जैन मुनि का वेव, अन्य मुनियों का वेत्र और गृहस्थों का वेष । इनमें से किसी भी वेष से मोक्ष प्राप्त होता है" । + दिगम्बर आचार्य श्री पूज्यपाद के शब्द भी भाष्य से मिलते
★ लिंगं द्विविधं द्रव्यलिंगं मावलिंगं च । मावलिंग प्रतीत्य सबै पच निर्मन्था मावलिंगे भवन्ति द्रव्यलिंगं प्रतीत्य भाव्याः । तत्वार्थमान्य ६-४९ ।
1 द्रव्यलिंगं त्रिविधं स्वलिंग, अन्यलिंगं गृहिलिंग इति तत्प्रति भाव्यम् ।
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