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मुनिसंस्था के नियम ]
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इससे इतना तो मालूम होता है कि न तो दिगम्बर सम्प्रदाय में वेष की एकान्तता थी, न श्वेताम्बर सम्प्रदाय में । व्यावहारिक उदारता भी दोनों सम्प्रदायों में रही है तथा वास्तविक साधुता का नग्नता के साथ कोई सम्बन्ध नहीं है, इसलिये नग्नता को मूल-गुण
में स्थान नहीं मिल सकता |
नम्रता हरएक सम्प्रदाय में रही है, परन्तु किसी सम्प्रदाय के लिये अनिवार्य नियम बना लेना ठीक नहीं है ! साथ ही इस बात का ख्याल रखना चाहिये कि इससे किसी को कष्ट न हो । जहाँ नग्नता का रिवाज़ मृतप्राय हो वहाँ नग्न रहकर स्वतंत्र विहार करना महिलाओं के साथ अन्याय करना है।
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प्रश्न- जब नग्न बच्चों को देखकर त्रियों को बुरा नहीं मालूम होता, और पशुओं को देखकर भी बुरा नहीं मालूम होता तत्र मुनियों को देखकर बुरा क्यों मालूम होगा
उत्तर- जिस प्रकार छोटे छोटे बालकों और बैलों को नग्न देखकर स्त्रियों को बुरा नहीं मालून होता, उसी प्रकार छोटी छोटी बालिकाओं और गायों को नग्न देखकर पुरुषों को बुरा नहीं मालूम होता, तब क्या इसी आधार पर यह कहा जा सकता है कि जिस प्रकार पुरुष नग्न-साधु बनकर स्त्रियों के सामने निकलते हैं उसी प्रकार स्त्रियाँ भी नम साध्वी बनकर पुरुषों के सामने निकला करें । यदि नग्न स्त्रियों को पुरुष सहन नहीं कर सकते तो नग्न पुरुषों को
कृत्वा पुनस्तन्मुखतीत्युपदेशः कृतः संयमिनां इत्यपवाद वेत्रः । तथा नृपादिवगोत्पन्नः परम बेंगग्यवान् लिंगशुद्धिरहितः उत्यन्नमेहन टदोषः लखावान् वा शता सहिष्णुर्वा तथा करोति सोध्यपवादः प्रोच्यते । दर्शन नाभृत टीका-२४ ।
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