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सुनिसंस्था के नियम ]
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भले ही करे, परन्तु यह न तो मूल-गुणों में रक्खा जा सकता है, न उत्तर- गुणों में ।
गुण
नग्नता - यह दिगम्बर सम्प्रदाय के साधुओं के लिये मलहै । म० महावीर के समय में बहुत से जैन साधु नग्न रहते थे। स्वयं महात्मा महावीर भी नग्न रहते थे, फिर भी उस समय यह मूल-गुण नहीं था । दिगम्बर श्वेताम्बर भेद हो जाने के बाद जब दोनों पक्षों में तनातनी होने लगी, तब से दिगम्बर लोगों ने आवश्यकता से अधिक इस पर जोर दिया और इसे मुनियों के लिये मूळ-गुण बना दिया; और श्वेताम्बरों ने नग्नता का विच्छेद कर दिया । परन्तु मालूम ऐसा होता है कि महात्मा महावीर के समय में दोनों तरह के साधु होते थे । जिन कल्पी साधु नग्न रहते थे और स्थविर-कल्पी वस्त्र धारण करते थे । जिनकल्प और स्थविर - कल्प, ये दोनों शब्द ही कुछ अपना इतिहास बताते हैं । अगर इन शब्दों का सीधा अर्थ किया जाय तो जिनकल्प का अर्थ 'जिनके समान' और स्वविकल्प का अर्थ 'बूढ़ों के समान' होता है । महात्मा महावीर जिन थे, इसलिये जो लोग उनके समान नग्न रहते थे वे जिनकल्ली कहलाते थे और जो लोग स्थविर अर्थात् बूढ़ेपुराने -म० महावीर से भी पहिले के अर्थात् म० पार्श्वनाथ के अनुयायिओं के समान रहते थे अर्थात् वस्त्रधारी थे, वे स्थविरकल्पी कहलाते थे । इससे मालूम होता है कि जैन सम्प्रदाय में भी वेष को इतना महत्व नहीं है ।
हाँ, जिस प्रकार एक सेना के सैनिकों को एक सरीखी पोशाक पहिनना ज़रूरी समझा जाता है, जिससे वे एक दूसरे को